व्यष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 4 व्यष्टि अर्थशास्त्र कि सीमाओं व दोषों को समझिए

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के दोष एवं सीमाएं व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता आया है और इसे आर्थिक समस्याओं के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण शाखा के रूप में स्वीकार किया जाता रहा है। किन्तु इसके निम्नलिखित दोष या सीमाएं हैं.

(1) अर्थव्यवस्था का अधूरा चित्र- व्यष्टिगते अर्थशास्त्र में केवल व्यक्तिगत इकाइयों का ही अध्ययन किया जाता है । इसमें सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को स्थान नहीं दिया जाता है । फलतः देश व विश्व की अर्थव्यवस्था का सही-सही चित्र नहीं मिल पाता। अन्य शब्दों में, व्यष्टिगत अर्थशास्त्र समष्टिगत दृष्टिकोण न अपनाकर संकुचित दृष्टिकोण अपनाता है।

(2) अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित- व्यष्टिगत आर्थिक विश्लेषण कुछ ऐसी अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है जो वास्तविक जीवन में कदापि देखने में नहीं आतीं, जैसे-पूर्ण रोजगार, पूर्ण प्रतियोगिता इत्यादि ।।

(3) कुछ विशेष प्रकार की समस्याओं के लिए अनुपयुक्त- कुछ आर्थिक समस्याओं का अध्ययन व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अन्तर्गत नहीं किया जा सकता है, जैसे-रोजगार, प्रशुल्क नीति, आय व साधन का वितरण, मौद्रिक नीति, औद्योगीकरण, आयात-निर्यात तथा आर्थिक नियोजन से सम्बन्धित समस्याएं। इस प्रकार धीरे-धीरे व्यष्टिगत अर्थशास्त्र, वर्तमान आर्थिक समस्याओं के अध्ययन के लिए अनुपयुक्त सिद्ध होता जा रहा है।

(4) निष्कर्ष सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की दृष्टि से ठीक नहीं होते- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अध्ययन पर आधारित निष्कर्ष एवं निर्णय किसी व्यक्ति विशेष, फर्म के लिए तो ठीक हो सकते हैं लेकिन यह अनिवार्य नहीं है कि ये समस्त अर्थव्यवस्था के लिए भी सही हों । उदाहरण के लिए, व्यक्तिगत दृष्टि से बचत करना आवश्यक, उचित व वांछनीय है परंतु राष्ट्रीय दृष्टि से सामूहिक रूप से बचत अनुचित है।


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