प्रश्न 9 : लोकतन्त्र एक धर्म है, कैसे निबंध की विशेषताएँ लिखिए ?
उत्तर- डॉ. राधाकृष्णन के राजनीतिक विचार उनके धर्म दर्शन पर आधारित थे। वे सभी प्राणियों में ईश्वर का निवास मानते थे। उनका कहना था कि सभी मनुष्य एक समान हैं। यही कारण है कि वे वैयक्तिक स्वतन्त्रता के पक्षधर थे। वे लोकतन्त्र को सर्वोत्तम शासन-प्रणाली मानते थे; क्योंकि लोकतन्त्र का आधार बन्धुत्व और समानता होता है। इससे मनुष्य के विकास की सम्भावाएँ अधिक होती हैं।
लोकतन्त्र के प्रति अविश्वास रखने वालों के प्रति उन्होंने कहा- “वे मनुष्य अन्धे हैं, जो यह नहीं देख पाते कि आज मानव-समाज प्रगति के पथ पर अग्रसर है अब शंकालु जलाये नहीं जाते, सामन्त विशेषाधिकारों का परित्याग कर रहे हैं।(दास को अपमानजनक जीवन जीने के लिए विवश नहीं किया जा रहा है। अपनी संचित सम्पत्ति के लिए धनी व्यक्ति क्षमायाचना कर रहे हैं।
पराक्रमी सैनिक साम्राज्य-शान्ति की आवश्यकता की घोषणा कर रहे हैं और मानव-समाज की एकता का स्वप्न भी पूरा होता नजर आ रहा है। इस प्रकार का संसार निर्माण करने के लिए कुछ लोग कठोर परिश्रम कर रहे हैं, जिसमें गरीब व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में आहार, हवा, रोशनी, सूर्य का प्रकाश, जीव में गरिमा और सौन्दर्य लाने का अधिकार होगा।
लोकतन्त्र मूल्यवान है; क्योंकि इसमें प्रत्येक व्यक्ति स्वतन्त्र रहता है। अन्य शासन-प्रणालियों का आधार वैयक्तिक स्वतन्त्रता नहीं है, अपितु व्यक्ति विशेष की सनक व मन की लहर है। लोकतन्त्र प्रणाली में जीवन में निर्माण से सम्बन्धित सबको एक समान अधिकार प्राप्त होते हैं। किसी भी व्यक्ति के अधिकार का अतिक्रमण नहीं होता। यहां प्रत्येक व्यक्ति की स्वाधीनता में मतभेद किया जाता है।” |
डॉ. राधाकृष्णन् के अनुसार लोकतन्त्र का ढाँचा प्राप्त करना आसान है, किन्तु उसकी भावना प्राप्त करना सरल नहीं है; क्योंकि 'स्व' का अन्य व्यक्तियों की विभिन्न प्रकार की असीम मांगों के साथ समायोजन करना सरल नहीं है। वास्तव में, वही सच्चा लोकतन्त्री है, जिसमें विनम्रता, अपने को दूसरे के स्थान पर रखने की शक्ति हो और जो यह विश्वास करने की क्षमता रखता है कि सम्भव है कि वह गलती पर हो और उसका विरोधी ठीक हो, सत्य मार्ग पर हो ।