MP Board Notes
Home> Introduction to Computer >Q 4

Que : 4. कम्प्यूटर का माइक्रो, मेनफ्रेम एवं मिनी कम्प्यूटर में वर्गीकरण कीजिए।

मेनफ्रेम कम्प्यूटर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

सुपर कम्प्यूटर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

कम्प्यूटर के प्रकारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

एनालॉग, डिजिटल एवं हाइब्रिड कम्प्यूटर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए|

कम्प्यूटर की जनरेशन को समझाइए एवं इसके वर्गीकरण को विस्तार से समझाइए।

कम्प्यूटर के विभिन्न वर्गीकरण की व्याख्या कीजिए।
Answer:

उत्तर- कम्प्यूटर की जनरेशन (Generations of Computer) -

कम्प्यूटर की पीढ़ियाँ निम्नलिखित प्रकार से हैं -

(i) प्रथम पीढ़ी (First Generation, 1940-1956)- कम्प्यूटर की प्रथम पीढ़ी शुरूआत 1940 में हुई। इस जनरेशन के कम्प्यूटर वैक्यूम ट्यूब का प्रयोग आंतरिक ऑपरेशन के लिए करते थे। इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों की प्रोग्रामिंग बहुत कठिन थी तथा ये स्टोर्ड प्रोग्राम सिद्धांत पर कार्य करते थे। इस जनरेशन का मुख्य कम्प्यूटर इलेक्ट्रॉनिक न्यूमेरिकल इंटिग्रेटर एण्ड कैलकुलेटर (ENIAC) था जो कि एस्कर्ट और मुचली के द्वारा 1940 में विकसित किया गया ।

विशेषताएँ (Characteristics)- प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटरों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(अ) इन कम्प्यूटरों की प्रोसेसिंग क्षमता बहुत कम थी।

(ब) यह आकार में बड़े थे।

(स) आंतरिक ऑपरेशन के लिए वैक्यूम ट्यूब का प्रयोग किया जाता था।

(द) इस जनरेशन के कम्प्यूटरों की भाषा मशीनी भाषा (machine language) थी।

(इ) डेटा के इनपुट और आउटपुट के लिए पंच कार्ड का प्रयोग किया जाता था।

(फ) ये कम्प्यूटर स्टोर्ड प्रोग्राम सिद्धांत पर कार्य करते थे ।

(य) प्राइमरी मैमोरी बहुत ही सीमित थी।

(र) इन कम्प्यूटरों को चलाने पर अधिक विद्युत ऊर्जा खर्च होती थी।

(ल) प्राइमरी मैमोरी के लिए मैग्नेटिक ड्रम का प्रयोग किया जाता था।

(ii) द्वित्तीय पीढ़ी (Second Generation, 1956-1963)- द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर की अपेक्षा छोटे तथा कम मात्रा में विद्युत खपत करने वाले थे। इन कम्प्यूटरों में वैक्यूम ट्यूब के स्थान पर ट्रांजिस्टर का प्रयोग किया जाता था। ट्रांजिस्टर का विकास जॉन बर्डिन और विलियम बी शॉकली ने अमेरिका की बेल प्रयोगशाला (laboratories) में किया था। इस जनरेशन के कम्प्यूटरों में प्राइमरी मैमोरी के लिए मैग्नेटिक कोर का प्रयोग किया जाता था। इस जनरेशन का मुख्य कम्प्यूटर UNIVAC 1108 था। इस काल में कम्प्यूटरों का प्रयोग व्यापार तथा उद्योगों में किया जाने लगा।

इस पीढ़ी के कम्प्यूटर टेप तथा डिस्क का प्रयोग करने लगे, जिसके परिणामस्वरूप पंच कार्ड का प्रचलन कम हो गया तथा इसकी प्रोसेसिंग गति भी तीव्र हो गई। विशेषताएँ (Characteristics) - द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटरों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(अ) द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटरों में वैक्यूम ट्यूब के स्थान पर ट्रांजिस्टर का प्रयोग किया जाने लगा।

(ब) प्राइमरी मैमोरी के रूप में मैग्नेटिक कोर का प्रयोग किया जाने लगा।

(स) इस जनरेशन के कम्प्यूटरों की गति प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटरों की गति से कहीं अधिक थी।

(द) इस जनरेशन के कम्प्यूटरों की भाषा प्रोग्रामिंग भाषा, असेम्बली भाषा तथा उच्चस्तरीय भाषा थी।

(इ) ये कम्प्यूटर प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटरों से आकार में छोटे तथा वजन में हल्के थे।

(फ) इन कम्प्यूटरों में स्थायी रूप से डेटा स्टोर करने के लिए मैग्नेटिक टेप को प्रयोग में लिया जाता था ।

(य) ये कम्प्यूटर प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटरों से कीमत में कम थे।

(र) द्वितीय पीढ़ी के मुख्य कम्प्यूटर UNIVAC, ICL1901, IBM-700 तथा ICL-1901 थे।

(iii) तृतीय पीढ़ी (Third Generation, 1964-1971) - तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटर क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में आंतरिक ऑपरेशन करने के लिए इंटिग्रेटेड सर्किट (IC) को उपयोग में लाया गया| इंटिग्रेटेड सर्किट को ट्रांजिस्टर तथा कैपेसिटर आदि से मिलाकर एक चिप के रूप में बनाया गया। यह इस जनरेशन का महत्वपूर्ण आविष्कार था। इंटिग्रेटेड सर्किट को प्रयोग में लेने के कारण कम्प्यूटर आकार में छोटे, गति में काफी तेज तथा काफी विश्वसनीय हो गये।

इस पीढ़ी में महत्वपूर्ण विकास ऑपरेटिंग सिस्टम का हुआ, जिसके परिणामस्वरूप कम्प्यूटर ऑपरेटर तथा सी. पी. यू. के मध्य सीधा सम्बन्ध स्थापित हो सका। तृतीय पीढ़ी में मिनी कम्प्यूटर का भी विकास हुआ। इन कम्प्यूटरों का प्रयोग बड़ी-बड़ी सरकारी संस्थाओं तथा व्यापारिक संस्थानों द्वारा सफलतापूर्वक किया जाने लगा। इस पीढ़ी के अंतर्गत ही कम्प्यूटर पर वर्ड प्रोसेसिंग सम्भव हो सकी। इसके प्रारम्भ में सबसे महत्वपूर्ण योगदान IBM का रहा।

विशेषताएँ (Characteristics)- तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटरों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(अ) इन कम्प्यूटरों में ट्रांजिस्टर के स्थान पर सिंगल चिप या इंटिग्रेटेड सर्किट का प्रयोग किया गया ।

(ब) इंटिग्रेटेड सर्किट के प्रयोग के कारण कम्प्यूटर आकार में काफी छोटे हो गये।

(स) इंटिग्रेटेड सर्किट के प्रयोग के कारण प्राइमरी मैमोरी की क्षमता काफी बढ़ गई। (द) इस जनरेशन के कम्प्यूटरों की डेटा प्रोसेसिंग की गति द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटरों से काफी तेज थी।

(इ) ये कम्प्यूटर कीमत में सस्ते थे।

(फ) तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटरों में उच्चस्तरीय भाषा का प्रयोग आसानी से किया जाने लगा।

(य) इस पीढ़ी के मुख्य कम्प्यूटर CDC-1700 तथा ICL-2903 थे ।

(iv) चतुर्थ पीढ़ी (Fourth Generation, 1971-1985) - चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटरों में वैरी लार्ज स्केल इंटीग्रेशन (VLSI) तथा माइक्रोप्रोसेसर चिप का प्रयोग किया गया। माइक्रोप्रोसेसर का विकास संपूर्ण सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट के सिंगल चिप पर डिजाइन होने पर संभव हुआ और इस कार्य को VLSI के विकास ने संभव बनाया। इन्टेल कॉर्पोरेशन (USA) ने 1971 में माइक्रोप्रोसेसर चिप का विकास किया तथा एड रॉबर्ट्स द्वारा प्रथम माइक्रो कम्प्यूटर डिजाइन किया गया ।

विशेषताएँ (Characteristics)- चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटरों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -

(अ) इन कम्प्यूटरों में VLSI का प्रयोग आंतरिक ऑपरेशन करने के लिए किया जाने लगा।

(ब) इन कम्प्यूटरों में माइक्रोप्रोसेसर का प्रयोग किया जाने लगा।

(स) इस पीढ़ी के कम्प्यूटर आकार में काफी छोटे थे, जैसे- डेस्कटॉप कम्प्यूटर।

(द) इन कम्प्यूटरों की डेटा प्रोसेसिंग की क्षमता तथा डेटा स्टोरेज की क्षमता अधिक थी।

(इ) इनका एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण आसान था।

(फ) इनको ऑपरेट करना भी काफी आसान था ।

(य) चतुर्थ पीढ़ी का मुख्य कम्प्यूटर IBM-PC था।

(v) पंचम पीढ़ी (Fifth Generation, 1986 to Present)- आज पंचम पीढी के कम्प्यूटरों का ही प्रयोग किया जा रहा है। आज वैज्ञानिक कम्प्यूटरों में कृत्रिम बुद्धिमता (artificial intelligence) डाल रहे हैं जिससे कम्प्यूटर मानव की तरह सोच सके, समझ सके तथा मानव की तरह कार्य कर सके।

इस पीढ़ी में सुपर कम्प्यूटर का विकास हो सका, जिसके अंतर्गत कम्प्यूटर में एक नई तकनीक का विकास हुआ जिसे रोबोटिक्स के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त सॉफ्टवेयरों में मूलभूत परिवर्तन हुए तथा नए-नए ऑपरेटिंग सिस्टम विकसित किये गये।

विशेषताएँ (Characteristics)- पंचम पीढ़ी के कम्प्यूटरों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -

(अ) पंचम पीढ़ी के कम्प्यूटरों के आंतरिक ऑपरेशन के लिए वैरी लार्ज स्केल इंटिग्रेटेड सर्किट तकनीक का प्रयोग किया गया है ।

(ब) इन कम्प्यूटरों की प्रोसेसिंग क्षमता काफी अधिक है। इनकी गति पिको सेकण्ड तथा नैनो सेकण्ड में मापी जाती है।

(स) इन कम्प्यूटरों में निर्णय लेने की क्षमता है क्योंकि इनमें कृत्रिम बुद्धिमता है।

(द) इस जनरेशन के मुख्य कम्प्यूटर सुपर कम्प्यूटर तथा रोबोट हैं।

कम्प्यूटर का वर्गीकरण (Classification of Computer) – कम्प्यूटर को निम्नलिखित तीन आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है-

(i) अनुप्रयोगों के आधार पर कम्प्यूटरों का वर्गीकरण (Classification of Computers on the Basis of Applications) - अनुप्रयोगों के आधार पर कम्प्यूटर निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-

(अ) एनालॉग कम्प्यूटर्स (Analog Computers) - एनालॉग कम्प्यूटर वे कम्प्यूटर होते 'हैं जो भौतिक मात्राओं, जैसे- दाब (pressure), तापमान, लम्बाई आदि को मापकर उनके परिमाप अंकों में व्यक्त करते हैं। ये कम्प्यूटर किसी राशि का परिमाप तुलना के आधार पर करते हैं। जैसे कि थर्मामीटर कोई गणना नहीं करता है अपितु यह पारे के संबंधित प्रसार (relative expansion) की तुलना करके शरीर के तापमान को मापता है। एनालॉग कम्प्यूटर मुख्य रूप से विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में प्रयोग होते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में मात्राओं (quantities) का अधिक उपयोग होता है। ये कम्प्यूटर केवल अनुमानित परिमाप ही देते हैं ।

(ब) डिजिटल कम्प्यूटर्स (Digital Computers) – डिजिटल कम्प्यूटर वे कम्प्यूटर होते हैं जो अंकों की गणना करते हैं। जब अधिकतर लोग कम्प्यूटरों के बारे में विचार-विमर्श करते हैं तो डिजिटल कम्प्यूटर ही केन्द्र बिन्दु होता है। डिजिटल कम्प्यूटर वे कम्प्यूटर हैं जो व्यापार (business) को चलाते हैं, घर पर बजट तैयार करते हैं और अन्य सभी कार्य जो कम्प्यूटर कर सकता है, करते हैं। अतः यह सत्य है कि अधिकतर कम्प्यूटर, डिजिटल कम्प्यूटर की श्रेणी में आते हैं।

डिजिटल कम्प्यूटर डेटा और प्रोग्राम्स को 0 तथा 1 में परिवर्तित करके उनको इलेक्ट्रॉनिक रूप में ले आता है।

(स) हाइब्रिड कम्प्यूटर्स (Hybrid Computers) - हाइब्रिड का अर्थ है संकरित अर्थात् अनेक गुणधर्म युक्त होना।

ऐसे कम्प्यूटर जिनमें एनालॉग कम्प्यूटर और डिजिटल दोनों के कम्प्यूटर के गुण पाये जाते हैं, हाइब्रिड कम्प्यूटर कहलाते हैं। जैसे- कम्प्यूटर की एनालॉग डिवाइस किसी रोगी के लक्षणों, जैसे – तापमान, रक्तचाप आदि को मापती है। ये परिमाप बाद में डिजिटल भाग के द्वारा अंकों में बदल जाते हैं। इस प्रकार रोगी के स्वास्थ्य में आए उतार-चढ़ाव का तत्काल प्रेक्षण किया जा सकता है।

(ii) उद्देश्य के आधार पर कम्प्यूटरों का वर्गीकरण (Classification of Computers on the Basis of Purpose) - उद्देश्य के आधार पर कम्प्यूटर निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

(अ) सामान्य उद्देशीय कम्प्यूटर्स (General Purpose Computers) - ये ऐसे कम्प्यूटर हैं जिनमें अनेक प्रकार के कार्य करने की क्षमता होती है, लेकिन ये कार्य सामान्य होते हैं, जैसे - वर्ड प्रोसेसिंग में पत्र व दस्तावेज तैयार करना, दस्तावेजों को छापना, डेटाबेस बनाना आदि। इनमें लगे सी.पी.यू. की क्षमता सीमित होती है।

(ब) विशिष्ट उद्देशीय कम्प्यूटर्स (Special Purpose Computers) – ये ऐसे कम्प्यूटर हैं जिन्हें किसी विशेष कार्य के लिए तैयार किया जाता है। इनके सी.पी.यू. की क्षमता उस कार्य के अनुरूप होती है जिसके लिए इन्हें तैयार किया गया है। फिल्म उद्योग में फिल्म संपादन के लिए विशिष्ट उद्देशीय कम्प्यूटर का उपयोग किया जाता है ।

इसके अलावा विशिष्ट उद्देशीय कम्प्यूटर का उपयोग अन्तरिक्ष विज्ञान, मौसम विज्ञान, युद्ध में प्रक्षेपास्त्रों का नियंत्रण, उपग्रह-संचालन, भौतिक व रसायन विज्ञान में शोध, चिकित्सा, यातायात-नियंत्रण, समुद्र विज्ञान, कृषि विज्ञान, इंजीनियरिंग आदि के क्षेत्र में किया जाता है।

(iii) आकार के आधार पर कम्प्यूटरों का वर्गीकरण (Classification of Computers on the Basis of Size) - आकार के आधार पर कम्प्यूटर निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं-

(अ) माइक्रो कम्प्यूटर्स (Micro Computers) - तकनीक के क्षेत्र में सन् 1970 में एक क्रांतिकारी अविष्कार हुआ। यह अविष्कार था माइक्रोप्रोसेसर का जिसके उपयोग से सस्ते कम्प्यूटर सिस्टम बनाना संभव हुआ। ये कम्प्यूटर एक डेस्क पर अथवा एक ब्रीफकेस में भी रखे जा सकते हैं। ये छोटे कम्प्यूटर माइक्रो कम्प्यूटर कहलाते हैं। माइक्रो कम्प्यूटर कीमत में सस्ते और आकार में छोटे होते हैं इसलिए ये व्यक्तिगत उपयोग के लिए घर-बाहर किसी भी कार्यक्षेत्र में लगाये जा सकते हैं, अतः इन्हें पर्सनल कम्प्यूटर या पी.सी. भी कहते हैं ।

इस प्रकार के कम्प्यूटर सिस्टम उपभोक्ताओं की विशेष आवश्यकताओं के अनुरूप ही बनाए जाते हैं। ये आवश्यकताएँ विभिन्न प्रकार की हो सकती हैं, जैसे कि व्यापारी के लिए हिसाब-किताब ठीक रखना, डॉक्टर या वकील के लिए ग्राहकों का पूर्ण विवरण रखना, लेखक के लिए वर्ड प्रोसेसिंग, आर्किटेक्ट के लिए नक्शे बनाना और आर्टिस्ट के लिए चित्र बनाना इत्यादि।

(ब) मिनी कम्प्यूटर्स (Mini Computers) - ये कम्प्यूटर मध्यम आकार के कम्प्यूटर होते हैं। ये माइक्रो कम्प्यूटर की तुलना में अधिक कार्य क्षमता वाले होते हैं।

मिनी कम्प्यूटर की कीमत माइक्रो कम्प्यूटरों से अधिक होती है और ये व्यक्तिगत रूप से खरीदे नहीं जा सकते हैं। इन्हें छोटी या मध्यम स्तर की कम्पनियाँ काम में लेती हैं। इन कम्प्यूटरों पर एक से अधिक व्यक्ति काम कर सकते हैं।

मिनी कम्प्यूटर में एक से अधिक सी.पी.यू. होते हैं। इनकी मैमोरी और गति (speed) माइक्रो कम्प्यूटर से अधिक और मेनफ्रेम कम्प्यूटर से कम होती है। ये मेनफ्रेम कम्प्यूटर से सस्ते होते हैं।

ऐसे कम्प्यूटर बीमा कंपनियों, बैंकों, फैक्ट्रियों आदि में हिसाब-किताब रखने या कर्मचारियों का लेखा-जोखा रखने जैसे कार्यों में उपयोग किये जाते हैं। कुछ अतिरिक्त डिवाइसेज को जोड़ने पर ये कम्प्यूटर कई अन्य प्रकार के काम भी कर सकते हैं, जैसे कि चौराहों पर ट्रैफिक संकेतों को नियंत्रित करना, बड़े होटलों तथा दफ्तरों में फायर अलार्मों का नियंत्रण करना या किसी उद्योग सिस्टम को पूर्णतः स्वचालित करना। इन कम्प्यूटरों से जुड़े टर्मिनल सामान्यतः एक ही बिल्डिंग में लगे होते हैं और वे कम्प्यूटर से सीधे तारों द्वारा ही कनेक्ट किये जाते हैं।

एक मध्यम स्तर की कम्पनी मिनी कम्प्यूटर का उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए कर सकती है-

(क) कर्मचारियों के वेतन पत्र (payroll) तैयार करना,

(ख) वित्तीय खातों का रख-रखाव,

(ग) लागत- विश्लेषण,

(घ) बिक्री विश्लेषण,

(ड़) उत्पादन-योजना।

(स) मेनफ्रेम कम्प्यूटर्स (Mainframe Computers) - ये कम्प्यूटर आकार में बहुत बड़े होते हैं साथ ही इनकी संग्रह-क्षमता भी अधिक होती है। इनमें अधिक मात्रा के डेटा पर तीव्रता से प्रोसेस या क्रिया करने की क्षमता होती है, इसलिए इनका उपयोग बड़ी कम्पनियाँ, बैंक तथा सरकारी विभाग एक केन्द्रीय कम्प्यूटर के रूप में करते हैं। इन कम्प्यूटर पर सैकड़ों यूजर्स चौबीसों घंटे एक साथ काम कर सकते हैं।

इन कम्प्यूटरों को कहीं भी एक स्थान पर लगाया जा सकता है और इन्हें उपयोग में लेने वाले कर्मचारियों के लिए अनेक टर्मिनल आवश्यकता के अनुसार अलग-अलग स्थानों पर भी लगाये जा सकते हैं। पास वाले टर्मिनल सीधे तार द्वारा ही कम्प्यूटर से जोड़ दिये जाते हैं। कुछ किलोमीटर दूरी पर स्थित टर्मिनल टेलीफोन की लाइनों द्वारा मेनफ्रेम कम्प्यूटर से जुड़े रहते हैं और अत्यंत दूर स्थित टर्मिनल रेडियोवेव, माइक्रोवेव लिंक या भू-उपग्रह संचार व्यवस्था द्वारा मेनफ्रेम कम्प्यूटर से जुड़े रहते हैं। वास्तव में ये सारे टर्मिनल कम्प्यूटर का उपयोग करने के लिए क्यू में लगे रहते हैं परंतु अत्यंत शक्तिशाली होने के कारण मेनफ्रेम कम्प्यूटर प्रत्येक टर्मिनल का कार्य इतनी शीघ्रता से पूर्ण कर देता है कि टर्मिनल पर कार्य कर रहे कर्मचारी को यही आभास होता है कि कम्प्यूटर केवल उसी का कार्य कर रहा है इस व्यवस्था को टाइम शेयर्ड सिस्टम कहा जाता है। अंतर्देशीय विमान सेवाओं में सीटों के आरक्षण के लिए इसी प्रकार के कम्प्यूटर सिस्टमों का प्रयोग होता है।

(द) सुपर कम्प्यूटर्स (Super Computers) – सुपर कम्प्यूटर अत्यधिक तीव्र गति एवं अधिकतम यथार्थता (accuracy) के साथ कार्य करते हैं। इनमें अत्यधिक मात्रा में डेटा को व्यवस्थित (handle) करने की योग्यता होती है। सुपर कम्प्यूटर की गति 25,000 मिलियन अर्थमैटिक ऑपरेशन्स प्रति सेकण्ड तक होती है। सुपर कम्प्यूटर की स्टोरेज कैपेसिटी 1.2 GB या उससे अधिक होती है। ये कम्प्यूटर सभी प्रकार के उपकरणों (peripherals) का समर्थन करते हैं, जैसे - लाइन प्रिंटर, फ्लॉपी डिस्क, हार्ड डिस्क, विजुअल डिस्प्ले यूनिट, डॉट मैट्रिक्स इत्यादि।

CRAY, NEC, IBM नामक कंपनियाँ सुपर कम्प्यूटर विकसित करती हैं। भारत निर्मित परम मुख्य सुपर कम्प्यूटर है।

सुपर कम्प्यूटर मुख्यतः मौसम की जानकारी (weather forecasting), रिमोट सेंसिंग, इमेज प्रोसेसिंग, बायोमेडिकल अनुप्रयोगों (biomedical applications) इत्यादि के लिए उपयोग होते हैं।

सुपर कम्प्यूटर का उपयोग निम्नलिखित कार्यों में होता है -

(क) बड़ी वैज्ञानिक और शोध प्रयोगशालाओं में शोध व खोज करना

(ख) अन्तरिक्ष यात्रा के लिए अन्तरिक्ष-यात्रियों को अन्तरिक्ष में भेजना

(ग) मौसम की भविष्यवाणी

(घ) उच्च गुणवत्ता की ऐनीमेशन वाले चलचित्र (movie) का निर्माण करना।