Zoology प्राणीशास्त्र

प्रश्न 98 : पारिस्थितिकी के रूपान्तरण में मानव की भूमिका पर सविस्तार प्रकाश डालिये।

उत्तर- पारिस्थितिकी के रूपान्तरण में मानव की भूमिका- मानव yighfara andrapur (Natural environment) as far as arai (elements) तथा शक्तियों (forces) के साथ अपना सामंजस्य स्थापित कर लेता है। परन्तु मानव स्वयं एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण शक्ति होने के कारण प्राकृतिक वातावरण में रूपान्तरण भी करता है। यह रूपान्तरण मानव की इच्छा शक्ति एवं अनुकूलन दोनों ही रूपों में होता है।

पर्यावरण पर मानव की गतिविधियों (activities) अथवा प्रभावों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है

1. प्रत्यक्ष या उद्देश्यपूर्ण प्रभाव (Direct or intentional or voluntary impacts)

2. अप्रत्यक्ष या निरुद्देश्य प्रभाव (Indirect or unintentional or involuntary impacts)

1. प्रत्यक्ष या उद्देश्यपूर्ण प्रभाव (Director Intentional Impacts)- इस प्रकार के प्रभाव उद्देश्यपूर्ण होते हैं। इस प्रकार के प्रभावों से होने वाले परिणामों के बारे में भी मानव को जानकारी होती है। इस प्रकार के प्रभावों में मानव अपने आर्थिक एवं भौतिक विकास के लिए पर्यावरण को रूपान्तरित करता है। इन परिवर्तनों में मुख्य हैं

(i) कृषि कार्य (Agricultural Work)- अधिक उत्पादन और फसलों के व्यावसायीकरण के लिए रासयनिक खादों तथा कीटनाशकों का उपयोग, कृषि का मशीनीकरण इस प्रकार की गतिविधियों में आती हैं। इन सभी के कारण मिट्टी (soil), वनस्पति (Vegetation) तथा प्राणियों में प्रदूषण की समस्या बढ़ी है।

(ii) भूमि के उपयोग में परिवर्तन (Modifications in Land)– पर्यावरण सन्तुलन के लिए एक-तिहाई भूमि का जंगल होना अति आवश्यक है। मानव ने अपने उपयोग के लिए कृषि में विस्तार तथा फसलों के उत्पादन के लिए वनों की कटाई (deforestation) प्रारम्भ कर दी तथा घास क्षेत्रों को जलाना प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार व्यापारिक उद्देश्य से भी वनों की कटाई प्रारम्भ कर दी। इन सभी परिवर्तनों का बहुत ही विनाशकारी प्रभाव हुआ।

(iii) मौसम रूपान्तरण (Modification in Weather)- वर्षा को प्रेरित 'करने के लिए मेघ बीजन (cloud seeding to induce precipitation), बादलों एवं कोहरों को उनके स्थान से हटाना, ओलावृष्टि (hailstorm) को रोकना आदि मौसम के रूपान्तरण में की गयी मानव की गतिविधियाँ हैं।

(iv) निर्माण तथा उत्खनन कार्य (Construction and Excavation)- जल भण्डारों तथा सिंचाई के लिए नहरों का बनाना, नदी की जलधाराओं में विपथगमन (diversion), नदी की धाराओं में हेर-फेर, बांधों का निर्माण, खनिजों (minerals) का खनन एवं खनिज तेलों का बेधन आदि इन सभी से प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन होता है।

निर्माण कार्यों (जैसे बांधों तथा जल भण्डारों का निर्माण) के द्वारा सतह के नीचे स्थित शैलों के सन्तुलन में अव्यवस्था हो जाती है जिसके कारण भूकम्पीय घटनाओं का प्रादुर्भाव होता है। उदाहरण के तौर पर लॉस एन्जेलेस में सन् 1963 में आये भूकम्पों के कारणों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि भूकम्प का महत्त्वपूर्ण कारण खनिज तेल के उत्पादन में वृद्धि के लिए खनिज तेल के कुओं में द्रवस्थैतिक दाब (Hydrostatic pressure) को बढ़ाने के लिए पम्पिंग (Pumping) द्वारा जल पहुँचाना था।

मानव अपनी मूलभूत आवश्यकताएँ रोटी, कपड़ा, मकान को प्राप्त करने के लिये विभिन्न क्रियाएँ करता है और जब ये उसे प्राप्त हो जाती हैं तो वह अपनी द्वितीयक आवश्यकताओं जैसे उद्यम, वस्तुनिर्माण जैसे व्यवसायों का विकास करता है तथा उसके बाद वह शिक्षा, यातायात, धर्म, संस्थाएँ। आदि क्रियाओं का विकास करता है। अतः इन सभी आवश्यकताओं की। पूर्ति के लिए पर्यावरण (environment) ही एक मात्र आधार स्थल होता है। जहाँ पर जितने संसाधन उपलब्ध होते हैं, मानव उसी के अनुसार अपने क्रियाकलापों द्वारा विकास के विभिन्न स्तरों को निरूपित करता है।

2. अप्रत्यक्ष अथवा निरुद्देश्य प्रभाव (Indirect or Unintentional Impact)– मानव द्वारा पर्यावरण (environment) पर अप्रत्यक्ष प्रभाव न तो पहले से सोचे हुए होते हैं और न ही पहले से नियोजित। यह अप्रत्यक्ष प्रभाव मानव द्वारा विकास की गति को तेज करने के लिए विशेष तौर से प्रौद्योगिक विकास के लिए विस्तार एवं उसके द्वारा किये गये क्रियाकलापों के कारण होते हैं। उदाहरण के लिए D.D.T. सबसे अधिक विषैला पदार्थ होता है। यह वातावरण से भोजन श्रृंखला के द्वारा प्राणियों के शरीर में पहुँचकर कई रोग (विकार) उत्पन्न कर देता है। इसी प्रकार तेल वाहक जलयानों द्वारा समुद्रों में रिसाव, कारखानों से निकले हुए पदार्थों का जलविमोचन (disposal), लैड या सीसे जैसी भारी धातुओं की निर्मुक्ति आदि पानी को दूषित कर पर्यावरण को असन्तुलित करते हैं।

इसी प्रकार पौधों के वंशगुण (Genetics) में सुधार के नाम पर पौधों. के वास्तविक गुणों को नष्ट किया जा रहा है, जिससे पौधों की अनेक जातियों के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है।


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