Zoology प्राणीशास्त्र

प्रश्न 9 : कार्डेटा के मुख्य लक्षण लिखिये।

उत्तर- कार्डेटा के विशेषणिक लक्षण- समस्त कार्डेट जन्तुओं के जीवन-काल की किसी न किसी अवस्था में कुछ विशेष लक्षण आवश्यक रूप से देखे जाते हैं। इन लक्षणों को प्राथमिक या मूलभूत कार्डेट लक्षण कहा जाता है। ये निम्न होते हैं –

1. नोटोकॉर्ड की उपस्थिति- नोटोकॉर्ड या पृष्ठरज्जु एक कठोर शलाखा के रूप में पाये जाने वाली रचना है जो शरीर के पृष्ठ भाग में एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैली होती है। नोटोकॉर्ड की स्थिति जन्तु में केन्द्रीय तन्त्रिका तंत्र के नीचे तथा आहार नाल के ऊपर होती है। यह भ्रूण में परिवर्धन की आरम्भिक अवस्था में मध्य पृष्ठतल में आहार नाल की एण्डोडर्म से विकसित होती है। यह एक प्राथमिक अतः कंकाल बनाती है जो केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तथा पेशियों को सहारा प्रदान करती है। नोटोकार्ड सामान्यतया प्रोटोकार्डेट (protochordate) जन्तुओं में पाई जाती है तथा अधिकांश वयस्क कशेरुकियों (vertebrates) में नोटोकॉर्ड के स्थान पर कॉर्टिलेज (cartilage) या हड्डियों (bones) का बना कशेरुक दण्ड (vertebral column) पाया जाता है।

2. ग्रसनीय क्लोम दरारों की उपस्थिति- सभी कार्डेटा जन्तुओं में जीवन की किसी न किसी प्रावस्था में ग्रसनीय क्लोम छिद्र अवश्य पाये जाते हैं। ये मुख के पीछे आहार नाल की ग्रसनीय दीवार में उपस्थित युगल छिद्रों के रूप में पाये जाते हैं। इन रचनाओं का निर्माण भ्रूणीय अवस्था में एक्टोडर्म के अन्दर की ओर धंसने तथा ग्रसनीय एन्डोडर्म के बाहर की ओर उभरने। तथा दोनों के समेकन से होता है।

प्रोटोकॉर्जेट्स तथा निम्न जलीय कार्डेट्स में गिल-स्लिट्स जीवन पर्यन्त क्रियाशील रहते हैं परन्तु उच्च कार्डेट्स वयस्क जन्तुओं में ये रचनाएँ या तो अदृश्य हो जाती हैं या फिर अन्य श्वसनी रचनाओं में परिवर्तित हो जाती हैं।

3. पृष्ठ नलिकार नर्वकार्ड की उपस्थिति (Presense of Dorsal Tubular Nerve cord)- कार्डेट जन्तुओं में तंत्रिका तंत्र देह की पृष्ठ सतह पर उपस्थित होता है। इन जन्तुओं की रचना में एक लम्बवत् खोखली एवं नली के आकार की संरचना तंत्रिका तंत्र के पीछे की ओर स्थित होती है जो देहभित्ति के ठीक नीचे तथा नोटोकॉर्ड के ऊपर पायी जाती है। नर्व कार्ड या तंत्रिका नली भ्रूणीय अवस्था में एन्डोडर्म के मध्य पृष्ठ तल पर अन्तर्वलन द्वारा बनती है। आरम्भ में यह भ्रूण की पृष्ठ सतह पर एक संकरी पट्टी के रूप में होती है जो न्यूरल कहलाती है। यह प्लेट नीचे की ओर धंसती जाती है तथा इसके दोनों किनारे न्यूरल फोल्ड के रूप में ऊपर उठ जाते हैं जो एक-दूसरे की ओर बढ़कर अंत में परस्पर मिलकर न्यूरल गुहा का निर्माण करती हैं। अधिकांश कार्डेट जन्तुओं में नर्वकॉर्ड का अगला सिरा फैलकर मस्तिष्क का निर्माण कर लेता है तथा शेष पिछला भाग रीढ़ रज्जु या स्पाइनल कॉर्ड बनाता है। मस्तिष्क कशेरुकी जन्तुओं में क्रेनियम के भीतर रहता है तथा स्पाइनल कॉर्ड वर्टिब्रल कैनाल अर्थात् कशेरुक नाल के भीतर उपस्थित होती है।

उपर्युक्त वर्णित तीन प्राथमिक लक्षण समस्त कार्डेटा जन्तुओं की प्रारम्भिक भ्रूणीय अवस्था में तो अवश्य देखे जाते हैं परन्तु ये सभी लक्षण वयस्क अवस्था में या तो पूर्ण रूप से अदृश्य हो जाते हैं या फिर अन्य किसी रचना में रूपान्तरित हो जाते हैं।

4. कार्डेटा के सामान्य लक्षण (General characters of chordates)- प्राथमिक कार्डेट लक्षणों के अतिरिक्त कार्डेट जन्तुओं में निम्नलिखित सामान्य लक्षण मिलते हैं

1. ये जलीय (aquatic), स्थलीय (terrestrial) अथवा वायव (aerial) जन्तु होते हैं, सभी स्वतंत्र रूप से जीवन यापन करते हैं।

2. इनका शरीर विभिन्न आकार का होता है तथा ये द्विपार्श्व सममित (bilaterally symmetrical) तथा विखण्डीकृत होते हैं।

3. इनकी देह त्रिस्तरीय (triplobastic) होती है जिसमें एक्टोडर्म (ectoderm), मीजोडर्म (mesoderm) एवं एण्डोडर्म (endoderm) के रूप में तीन जनन स्तर उपस्थित होते हैं।

4. बाह्य कंकाल (exoskeleton) सामान्यतया उपस्थित होता है जो अधिकांश कशेरुकियों में बहुत अधिक विकसित होता है।

5. त्वचा में अधिकर्च स्तरित उपकला से बनी होती है। नॉन कॉडेंट्स में यह एकल स्तर से बनी रहती है। उपकला के नीचे डर्मिस स्तर उपस्थित रहता है जो मीजोडर्मल संयोजी ऊत्तक से बना होता है।

6. इनमें वास्तविक देहगुहा पाई जाती है जो उद्गम की दृष्टि से शाइजोसील (schizocoel) अथवा एन्टेरोसील (enterocoel) प्रकार की होती है।

7. इनमें उपस्थित (cartilage) अथवा अस्थियों (bones) या दोनों का बना एक आन्तरिक ढांचा या अन्तः कंकाल पाया जाता है।

8. इन जन्तुओं में पाचन-तंत्र पूर्ण होता है तथा इसमें पाचक ग्रन्थियाँ भी उपस्थित रहती है।

9. इनमें यकृत निवाहिका उपतन्त्र पाया जाता है। इन जन्तुओं में आहार नाल से भोजन अवशोषित होकर रुधिर द्वारा यकृत निवाहिका शिरा में पहुँचता है जो इस रुधिर को यकृत में ले जाती है।

10. कार्डेट जन्तुओं में बन्द प्रकार का रुधिर परिसंचरण तंत्र पाया जाता है। हृदय आहार नाल के नीचे अधर तल पर स्थित होता है तथा पृष्ठ वाहिनी में रुधिर आगे से पीछे की ओर बहता है। श्वसन वर्णक के रूप में। हीमोग्लोबिन होता है जो लाल रुधिर कणिकाओं में उपस्थित रहता है।

11. उत्सर्जी रचनाओं (excretory structures) के रूप में प्रोटो, मीजो। अथवा मेटानेफ्रिक वृक्क उपस्थित रहते हैं।

12. समस्त कशेरुकीय जन्तुओं में नोटोकॉर्ड के स्थान पर कशेरुकदण्ड (vertebral column) पाया जाता है जिसमें बहुत सी कशेरुकायें (vertebrae) उपस्थित होती है।

13. सिर पर प्रकार-संवेदी रचना के रूप में नेत्र (eyes) उपस्थित रहते हैं जो वस्तुओं का प्रतिबिम्ब बनाने में सक्षम होते हैं। इनकी उत्पत्ति मस्तिष्क से होती है।

14. इनमें तंत्रिका कोशिकाएं नर्व कार्ड की केन्द्रीय नाल (central canal) के चारों ओर उपस्थित होती है। तन्त्रिकाओं का उद्गम पृष्ठ अधर तन्त्रिका मूलों से होता है।

15. कार्डेटा जन्तुओं में गुदा (anus) के पीछे वाला भाग पूँछ (tail) कहलाता है। इसमें पेशियाँ, नर्वकार्ड, नोटोकार्ड या कशेरुक दण्ड एवम् रक्त वाहिनियां उपस्थित होती है।

16. नर एवं मादा अलग-अलग होते हैं तथा विकास सामान्यतया प्रत्यक्ष (direct) अर्थात् सीधे ही बिना लारवा अवस्था के होते हैं।


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