Zoology प्राणीशास्त्र

प्रश्न 49 : बन्दर के सामाजिक व्यवहार को समझाइये।

उत्तर- भारतीय लंगूर इन्हें हनुमान लंगूर भी कहते हैं। सामान्यत: हनुमान लंगूर एकल नर द्विलैंगिक समूहों में दिखाई देते है। जिसमें एक प्रभावी, वयस्क नर व अनेक वयस्क तथा अवयस्क मादाएँ एवं इनके शिशु होते हैं। प्रभावी वयस्क नर दल का मुखिया एवं सर्वेसर्वा होता है एवं ओवर लॉर्ड (Overlord) कहलाता है। यह दल की सभी गतिविधियों का संचालन भी करता है। समूह के अन्य नर शिशु किशोरावस्था तक या तो स्वयं ही दल को छोड़कर सर्व नर समूह (all male group) के सदस्य बनते हैं अथवा वयस्क नर अथवा मादाओं द्वारा प्रताड़ित कर इन्हें जंगल में भटकने या अकेले रहने हेतु मजबूर कर दिया जाता है।

लंगूर सामान्यतः दिन के समय मैदानों में रहना पसंद करते हैं तथा रात्रि का समय विश्राम कर व्यतीत करते हैं।

बड़े अथवा छोटे प्रकार के पत्ते जो बहुत अधिक पोषक नहीं होते इनका भोजन होते हैं। इसलिए, निरंतर ऊर्जा की प्राप्ति के लिए इन्हें भोजन की अत्यधिक मात्रा का उपयोग करना पड़ता है। यह इन्हें इतना जल उपलब्ध कराता है कि इन्हें कई दिनों तक इसकी आवश्यकता नहीं पड़ती। लंगूरों में भी प्रभावी पदानुक्रम (dominance hierarchy), अन्य प्राइमेट जन्तुओं की ही भाँति सुविकसित रूप में देखा गया है।

हनुमान लंगूर बहुनर द्विलैंगिक समाज (multimalebisexual group) का निर्माण करते हैं, जहाँ कुछ नरों के साथ बहुत-सी मादाएँ एवं इनके शिशु रहते हैं। इस समूह के सभी सदस्य एक साथ रहते हुए अपना जीवन यापन करते हैं।

प्रभावी नर, अपने से निम्न स्तर के वानरों की अपेक्षा छोटे-मोटे लड़ाई-झगड़ों में कम सक्रिय रहता है। स्वयं के लिए वह अधिक से अधिक भूमि पर स्वामित्व रखता है। प्रभावी नर (dominant male) को खाद्य सामग्री ग्रहण करने, मादाओं से सम्पर्क स्थापित करने तथा स्वयं के लिये अनुकूलतम स्थान ग्रहण करने हेतु अग्रता एवं प्रमुखता प्राप्त होती है। यदि प्रभावी एवं अप्रभावी वानरों का आमना-सामना हो जाए तो, अप्रभावी अर्थात् उप प्रमुख (sub dominant) नर हट जाता है। सामान्यत: समाज के अधीनस्थ वर्ग के वानर अपने से उच्च कोटि अथवा उच्च पदग्रहण करने वाले वानर के प्रति अपनी निष्ठा दर्शाने के लिए अपने पश्च भाग (buttocks) को प्रेषित करते हैं। मादाओं में प्रबलता इनके प्रजनन, चक्र अथवा अनेक अन्य परिस्थितियों के अनुरूप बदलती रहती है। नवजात शिशु को जन्म देने के पश्चात् साधारणतः प्रभावी मादा अपने पद से अस्थायी रूप से स्वयं को। अलग कर लेती है। नवजात शिशुओं की देखभाल मादाएँ बड़ी सावधानी से करती हैं। नर इस कृत्य में कम ही भागीदार होते हैं। आपसी मेल-जोल के फलस्वरूप लंगूरों के समाज के सदस्यों के मध्य घनिष्ठ संबंध सदैव बना रहता है।


चित्र-(A) एकल प्रेसबाइटिक एण्डिलस, (B) समूह

रीसस वानर (Rhesus Monkey)- रीसस वानर में सामाजिक संगठन बबून के समान होता है, इनमें परिवार कम व्यवस्थित होता है, यह छोटे समूहों में रहते हैं। एक विशेष रीसस वानर की मादा अपने सभी किशोरों व शिशुओं के साथ रखती है। जब ये एक स्थान से दूसरे स्थान में प्रवास करते हैं, उसी स्थिति में मादा व युवा वानर हमेशा समूह में आगे रहते हैं। ऐसे समूह को बहुनर द्विलैंगिक समूह (multimale bisexual group) कहते हैं। भोजन की तलाश हेतु प्रत्येक दिन प्रमुख समूह छोटे-छोटे उप समूहों में विभक्त होता है, जहाँ प्रत्येक उपसमूह में एक वयस्क नर एवं इसकी मादाएँ व शिशु होते हैं। शाम पड़े सभी उप-समूह फिर से नियत स्थान पर एकत्रित हो प्रमुख समूह बनाते हैं।

अन्य प्राइमेट्स की ही भाँति वानरों की इस जाति के सदस्य भी मुख्य समूह से कुछ ही समय के लिए पृथक होते हैं। मुख्य समूह को निम्नलिखित तीन उप समूहों में विभेदित किया गया है

(i) केन्द्रीय उप समूह (Central Sub group)- सामान्यत: इसमें कई प्रभावी वयस्क नर (dominant adult males), वयस्क माताएँ, नवजात शिशु एवं बच्चे होते हैं। वीटो अधिकारी वाला नर भी इसी समूह में होता है।

(ii) प्रभावी उपसमूह (Dominant Male Sub group)— इसमें एक प्रभावी नर के अतिरिक्त वयस्क माताएँ, बच्चे एवं नवजात शिशु होते हैं।

(iii) परिधीय उप समूह (Peripheral Sub group)— इस समूह में केवल अधीनस्थ (subordinate) अर्थात् उपप्रभावी वयस्क नर ही होते हैं। ये अत्यधिक आक्रामक होते हैं एवं अन्य उपसमूहों के सदस्यों से जब-तब सीधे शत्रुता में लिप्त पाए जाते हैं।

रीसस वानर मानवजाति से एक प्रकार से सहवासी के रूप में भी जुड़ा हुआ है। इसके विभिन्न समूह गाँव तथा शहरों एवं सड़कों के किनारे पर पाये जाते हैं। अधिकतर ये मन्दिरों तथा पिकनिक स्थलों पर बहुतायत से मिलते हैं जहाँ मानव की खाद्य सामग्री इन्हें सरलता से उपलब्ध हो जाती है।


चित्र-(A) एकल मकाका मुलाटा (रीसस वानर) (B) द्विलैंगिक समूह

नर व मादाओं में पदानुक्रम का अत्यधिक कठोरता से पालन किया जाता है। मादाएँ सामान्यत: अपना अधिकांश समय अन्य वानरों एवं शिशुओं को संवारने में ही व्यतीत करती हैं। मादाएँ एक वर्ष तक अपने नवजात शिशु, की देखरेख करती हैं एवं नर शिशु के जन्म होने पर प्रथम शिशु के लिए अधिक समय नहीं दे पाती। एक वर्ष की आयु होने तक शिशु अपने साथ के सदस्यों के साथ खेलना प्रारम्भ कर देता है, परन्तु वह निरन्तर अपनी माता के पास रहकर ही यह सब करता है। कई बार वयस्क नरों को शिशु नरों पर आक्रमण करते भी देखा गया है।

कई बार अचानक दो समूहों का आमना-सामना होने पर, इनमें लड़ाई अवश्य संभावी हो जाती है। जिसमें नरों सहित, मादाएँ एवं किशोर भी शामिल होते हैं। समूह का मुखिया, स्थिति द्वारा आसानी से पहचाना जा सकता है। कुछ रीसस वानर समूहों में उच्चतम स्थान ग्रहण करने वाली मादा केवल मुखिया के अधीन होती है। ऐसी मादाओं के शिशु जल्दी ही अन्य उप प्रभावी वानरों के शिशुओं की अपेक्षा प्रमुखता से उच्च स्थान ग्रहण कर लेते हैं।

प्रत्येक वानर का विश्राम करने के लिये एक निश्चित स्थान होता है। दो भिन्न समूहों की सीमा यद्यपि कई बार अध्यारोपित करती है, परन्तु दोनों ओर के वानरों को आपसी मेल-जोल में कम ही शामिल होते देखा जाता है। मुखिया लगभग एक वर्ष तक समूह का संचालन करता है। अस्वस्थ होने पर या तो इसी समूह में निम्न श्रेणी ग्रहण (पदभार) करता है अथवा बहुत ही कम अवसरों पर अन्य समूह में अधिनस्थ स्थान ग्रहण करता है।


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