Zoology प्राणीशास्त्र

प्रश्न 104 : निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए- (i) ओजोन क्षय के दुष्प्रभाव (ii) अन्तरिक्ष में मानव बस्तियाँ

उत्तर- (i) ओजोन क्षय के दुष्प्रभाव- ओजोन क्षय के दुष्प्रभाव निम्न हैं-

(A) शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव- सूर्य की किरणों के साथ-साथ आने वाली घातक पराबैंगनी किरणों की ओजोन परत अवशोषित कर लेती है। यदि कुछ पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुँच जाती हैं तो वह जीवों तथा वनस्पति जगत के लिए निम्नलिखित रूप से हानिकारक सिद्ध होती है-

(1) त्वचा के क्षतिग्रस्त होने से कई प्रकार के चर्म कैन्सर हो जाते हैं। मिलिग्रैण्ड नामक चर्म कैंसर के रोगियों में से 40% से अधिक की अत्यन्त कष्टप्रद मृत्यु हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण सुरक्षा अभिकरण का अनुमान है कि ओजोन की मात्र 1% की कमी से कैंसर के रोगियों में 20 लाख की वार्षिक वृद्धि हो जाएगी।

(2) इनके प्रभाव से मनुष्यों की त्वचा की ऊपरी सतह की कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। क्षतिग्रस्त कोशिकाओं से हिस्टैमिन नामक रसायन का स्राव होने लगता है। हिस्टैमिन नामक रसायन के निकल जाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और ब्रॉन्काइटिस, निमोनिया, अल्सर आदि रोग हो जाते हैं।

(3) पराबैंगनी किरणों (Ultraviolet-rays) का प्रभाव आँखों के लिए भी घातक सिद्ध हुआ है। आँखों में सूजन और घाव होना तथा मोतियाबिन्द जैसी बीमारियों में वृद्धि का कारण भी इन किरणों का पृथ्वी पर आना ही माना जा रहा है। ऐसा अनुमान है कि ओजोन की मात्रा में 1% की कमी से आँख के रोगियों में 25 लाख की वार्षिक वृद्धि होगी।

(4) सूक्ष्म जीवों तथा वनस्पति जगत पर भी पर पराबैंगनी किरणों का बुरा असर पड़ता है। इनके पृथ्वी पर आने से सम्पूर्ण समुद्री खाद्य श्रृंखला गड़बड़ा सकती है क्योंकि इनके प्रभाव से सूक्ष्म स्वतंत्रजीवी शैवाल (फाइटोप्लैंक्टन) जो समुद्री खाद्य श्रृंखला का आधार हैं, नष्ट हो जाते हैं। यदि ये शैवाल नष्ट होंगे तो इन पर निर्भर रहने वाले छोटे-छोटे समुद्री जीव भी मर जाएंगे, फिर क्रमशः मछलियाँ, समुद्री पक्षी, सील, व्हेल और अन्त में मानव भी प्रभावित होगा जो इस खाद्य श्रृंखला की अन्तिम कड़ी है।

(B) वायुमण्डल पर पड़ने वाले प्रभाव :

(1) CO2 की मात्रा में वृद्धि- वर्तमान में पृथ्वी का वायुमण्डल कार्बन डाइऑक्साइड की अतिभारिता (overweight) को झेल रहा है। पौधों द्वारा जितनी कार्बन डाइऑक्साइड स्वांगीकृत की जा सकती है उससे अधिक मात्रा उद्योग एवं मौटर वाहनों द्वारा विसर्जित की जा रही है। फलस्वरूप वायुमण्डल में इस गैस की मात्रा में 2 प्रतिशत की दर से प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है। यह गैस भारी होने के कारण पृथ्वी के धरातल के समीप ही एक परत के रूप में स्थिर हो जाती है। कार्बन डाइऑक्साइड की यह परत पृथ्वी से आकाश की ओर लौटने वाले ऊष्मीय विकिरणों को परावर्तित कर देती है और तापवृद्धि का कारण बनती है।

तापमान की इस वृद्धि के फलस्वरूप दक्षिण-मध्य यूरेशिया एवं उत्तरी अमेरीका की वायु की शुष्कता में वृद्धि हुई है और कहीं-कहीं तीव्र धूल भरी आँधियाँ चलती हैं।

वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की है यदि पृथ्वी का ताप वर्तमान ताप से 3.6°C बढ़ जाए तो अंटार्कटिका और आर्कटिका ध्रुवों के विशाल हिमखण्ड पिघल जाएँगे और समुद्र की सतह 100 मीटर ऊँची हो जाने की सम्भावना है जिसके कारण समस्त पृथ्वी के जलमग्न हो जाने की सम्भावना है।

(2) जलवायु पर प्रभाव (Effects on Climate)- वायु प्रदूषण अपने व्यापक रूप में विश्व जलवायु पर भी अपना प्रभाव डालता है। यह सामान्य अनुभव है कि पिछले कुछ वर्षों में जलवायु में परिवर्तन आया है। पहले जिन स्थानों का जलवायु ठण्डा माना जाता था, वे वर्तमान में गर्म हो गये हैं।

इसी प्रकार गर्म स्थानों का जलवायु पहले की अपेक्षा कुछ ठण्डा हो गया है। वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की है कि पृथ्वी का ताप वर्तमान ताप से 3.6°C बढ़ जाए तो अंटार्कटिका और आर्कटिका ध्रुवों के विशाल हिमखण्ड पिघल जाएँगे और समुद्र की सतह 100 मीटर ऊँची हो जायेगी। फलस्वरूप सारी पृथ्वी जलमग्न हो जायेगी।

(3) मौसम पर प्रभाव (Effects on Weather)– वायुमण्डल में धूल के कणों की मात्रा लगातार बढ़ रही है, जिससे पिछले 25 वर्षों में वायुमण्डल के तापमान में 0.2°C की कमी आई है। तापमान की कमी की अवधि में यूरोपीय देशों में भीषण वर्षा हुई। उत्तरी अंध-महासागर में बर्फ की मोटी तह जम गयी थी। शनै-शनैः यूरोप में गर्मी के मौसम में वहाँ का तापमान बढ़ रहा है। इसके साथ-साथ ऊष्ण कटिबंधीय देशों में मौसम (वर्षा आदि) का स्थानान्तरण हो रहा है।

शहरी क्षेत्रों में दैनिक तापक्रम ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक देखा गया है। इसका कारण निश्चित ही वहाँ की वायु में प्रदूषकों की उपस्थिति के कारण ताप का परावर्तन ही है। इसके अतिरिक्त शहरी क्षेत्रों में कंकरीट तथा सीमेंट के बने भवनों तथा तारकोल की सड़कों द्वारा ताप को संग्रहीत करने तथा बाद में तापीय विकिरण के रूप में विसरित करने के कारण भी तापमान में वृद्धि होती है तथा स्थानीय तापक्रम धीरे-धीरे नीचे गिरता है।

(ii) अन्तरिक्ष में मानव बस्तियाँ-

मनुष्य की अन्तरिक्ष यात्राएँ 1960 के दशक में प्रारम्भ हुईं। लगभग इसी समय अन्तरिक्ष की बसावट (Space Colonization) की कल्पना भी की गई जिसके प्रणेता गेरॉर्ड नील (Garord Kitchen O'Niel) हैं। अन्तरिक्ष के अन्तरिक्ष चन्द्रमा व मंगल पर बसावट (Moon and Mars Colonization) की भी योजनाएं बनाई गईं। इन योजनों में यह अनुमान लगाए गए कि अन्तरिक्ष, चन्द्रमा या मंगल पर कैसी परिस्थितियाँ हैं, वहाँ जीवन बनाए रखने के लिए क्या प्रयास करने होंगे तथा यह सब कैसे व कितनी कीमत से किया जा सकता है। इसमें आने वाली समस्याएँ क्या होंगी तथा इस सबका क्या लाभ है?

अन्तरिक्ष में बस्तियाँ बनाने का आखिर प्रयोजन क्या हो सकता है? मनुष्य बहुत-से कार्य उत्सुकतावश करता है परन्तु उसकी नैसर्गिक प्रकृति ही चुनौतियों को खोजने और उन पर विजय पाने की रही है।

मनुष्य ने अन्तरिक्ष में बस्तियाँ बनाने का स्वप्न भी संभवतः इन्हीं कारणों से देखा, परन्तु फिर भी उसे इसके पीछे कुछ संभावित लाभ दिखाई दिये

1. मानव जाति की रक्षा (To Save Human Species)– एक अतिरेक कल्पना के अनुसार यदि कभी किसी प्राकृतिक आपदा के कारण या मानव द्वारा जनित प्रदूषण के कारण पृथ्वी पर जीवन असंभव हो जाए तो ऐसी अन्तरिक्ष बस्तियाँ मानव जाति की रक्षा करेंगी। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 150 से 200 व्यक्तियों की बस्ती बिना अन्तः प्रजनन से उत्पन्न समस्याओं के 2000 वर्ष तक जीवन क्षम रह सकती है। एक अनुमान यह भी है कि मात्र दो स्त्रियाँ ही ऐसी बस्ती की शुरुआत कर सकती हैं अगर मानव भ्रूण या शुक्राणु बैंक की सहूलियत उपलब्ध हों।

2. जीवन का फैलाव (To Spread Life)– मानव जहाँ तक अन्तरिक्ष की खोज कर पाया है वहाँ तक उसे विकसित जीवन के कोई चिह्न नहीं मिले हैं। अन्तरिक्ष की बनावट के पीछे एक उद्देश्य जीवन का विस्तार पृथ्वी के बाहर तक करना हो सकता है।

3. आर्थिक लाभ हेतु- वैज्ञानिक मानते हैं कि अन्तरिक्ष ग्रहों या उपग्रहों में बनाई गई मानव बस्तियों में महत्त्वपूर्ण शोध कार्य किया जा सकता है तथा कुछ ऐसे पदार्थ या तकनीकें खोजी और पृथ्वी पर उपलब्ध कराई जा सकती हैं जिनकी पृथ्वी पर आवश्यकता है तथा कमी भी है। इन पदार्थों में महत्त्वपूर्ण खनिज, रेडियोधर्मी पदार्थ आदि शामिल हो सकते हैं। जिनका दोहन अन्य आकाशीय पिण्डों से किया जा सकता है।

पृथ्वी पर संसाधन सीमित मात्रा में हैं तथा जिस गति से इनका दोहन हो रहा है उससे ये आने वाले वर्षों में विरल या समाप्त हो सकते हैं। पृथ्वी पर ऊर्जा का भी गहन संकट है तथा इसकी माँग दिनों-दिन बढ़ रही है। अन्तरिक्ष में बनाए गए केन्द्रों से और ऊर्जा का दोहन कर उसे पृथ्वी तक भेजने के क्षेत्र में तो वैज्ञानिक विशेष संभावना देख रहे हैं। सौर ऊर्जा पृथ्वी पर भी उपलब्ध है, परन्तु पृथ्वी के वायुमण्डल, बादलों, वर्षा आदि घटनाओं के कारण इसकी तीव्रता व निरन्तर उपलब्धता कम होती जा रही है। अन्तरिक्ष में वायुमण्डल के अभाव के कारण यह समस्या नहीं है। इस आर्थिक युग में लोग अन्तरिक्ष यात्रा को भविष्य में पर्यटन के लिए खोलने की कल्पना करने लगे हैं जिसके माध्यम से शोध संस्थान अमीर लोगों को अन्तरिक्ष की सैर कराकर (Space tourism) अपने कार्यक्रमों के लिए धन इकट्ठा कर सकें या निजी कम्पनियाँ लाभ कमा सकें। अब तक जिन देशों में अन्तरिक्ष के लिए मानव युक्त उड़ानें भेजी हैं उनका उद्देश्य पूर्णतः वैज्ञानिक रहा है तथा अन्तरिक्ष यात्रियों से इस कार्य के लिए कोई धनराशि नहीं ली गई है। डेनिस टीटो नामक एक धनपति अपना खर्च देकर अन्तरिक्ष में जाने वाले पहले व्यक्ति बने। उन्होंने 10 दिनों की अन्तरिक्ष यात्रा के लिए 20 मिलियन डॉलर (लगभग 1,000,000,000 रु. यानी एक अरब रु.) खर्च किए।

चन्द्रमा की बसावट (Moon Colonization)– अन्तरिक्ष में अथवा पृथ्वी के बाहर बसावट करने की योजनाओं में चन्द्रमा की बसावट मनुष्य का एक बड़ा स्वप्न रहा है। चन्द्रमा अन्तरिक्ष बसावट का पहला लक्ष्य इसलिए है, क्योंकि यह पृथ्वी का निकटतम आकाशीय पिण्ड है। चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से छः गुना कम है तथा इसी कारण चन्द्रमा पर कोई वातावरण (atmosphere) नहीं है। चन्द्रमा पर मानव को बसाने की दिशा में न तो कोई प्रयास किए गए हैं न ही निकट भविष्य में ऐसा कुछ करने की योजना है फिर भी वैज्ञानिक इस कार्य को एक चुनौती मानते हैं। तथा इसे हल करने के ऐसे प्रस्ताव तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं जिसे आवश्यकता पड़ने पर परखा जा सके। मंगल पर बस्तियाँ (Mars Colonization)–चन्द्रमा की तरह ही मंगल पर मानव बस्तियाँ बनाने की योजना बनाई जा रही हैं। मंगल पर हल्का वातावरण भी है तथा इसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति चन्द्रमा की तुलना में दोगुनी है। मंगल के वायुमण्डल में CO2 गैस है तथा यहाँ का तापमान भी प्रतिकूल नहीं है। मंगल ग्रह पर जल की उपस्थिति के पर्याप्त संकेत मिले हैं।


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