व्यष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 17: माँग की लोच क्या है? मांग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिये माँग की लोच का व्यावहारिक महत्व क्या है?

उत्तर - माँग की लोच का आशय एवं परिभाषा

माँग का नियम यह बताता है कि वस्तु के मूल्य में परिवर्तन होने से किस मांग कि प्रवर्त्ति किस दशा में होगी लेकिन मांग का नियम यह नहीं बताता है कि वस्तु के मूल्य में अल्प परिवर्तन होने से उसकी माँग में अधिक परिवर्तन क्यों होता है, जबकि अन्य वस्तु के मूल्य में उतने ही परिवर्तन का उसकी माँग पर कुछ प्रभाव नहीं होता। इस आर्थिक घटना कि व्याख्या करने हेतु मार्शल ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र में एक नया विचार दिया, जिसे माँग की लोच का नाम दिया|

‘लोच' से अर्थ हैं, किसी वस्तु में घुटने बढ़ने की शक्ति होने से| उदाहरण के लिए रबड़ की लोचदार कहते हैं, क्योंकि दबाव पड़ने पुर वह बढ़ जाता हैं और दबाव हटा लेने पर सिकुड़ जाता है| लोच दो बातों पर निर्भर होती है - 1. वस्तु के स्वभाव पर और 2. उस पर पड़ने वाले दबाव पर। यदि किसी वस्तु का स्वभाव लचीला नहीं है, तो बहुत दबाव पड़ने पर भी कम बढ़ेगा। यही बात वस्तुओं की माँग के सम्बन्ध में है। कुछ वस्तएँ ऐसी होती हैं कि मूल्य परिवर्तनों का उनकी माँग पर बहुत अधिक असर पड़ता है, जबकि कुछ वस्तुओं की माँग पर कम प्रभाव पड़ता है, यदि किसी वस्तु की माँग पर मूल्य के परिवर्तन का अधिक प्रभाव पड़ता है, तो उसे अर्थशास्त्र में ‘लोचदार मांग’ और यदि मांग पर मूल्य परिवर्तनों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, तो उसे 'बेलोच मॉग' कहते हैं।

प्रो. मेयर्स के शब्दों में - ‘माँग की लोच कीमत में हुए थोडे से परिवर्तन के प्रत्युत्तर में खरीदी गयी मात्रा में होने वाले सापेक्षिक परिवर्तन का माप हैं, जो कि कीमत के परिवर्तन में भाग देने पर आये।'

बेनहम के शब्दों में - ‘माँग की लोच के विचार का सम्बन्ध मूल्य में होने वाले छोटे से भी परिवर्तन का माँग की मात्रा पर पड़ने वाले प्रभाव से है।‘

माँग की लोच के प्रकार

माँग की लोच को मुख्य रूप से निम्नांकित भागों में बाँटा जा सकता है -

(अ) माँग की कीमत लोच

इसे सिर्फ मॉग की लोच ही कहा जाता है। किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन के कारण उसकी मॉग में जो परिवर्तन होता है, उसे माँग की कीमत लोच' करने ।

है. उसे माँग की कीमत लोच' कहते हैं । इसे ज्ञात करने का सूत्र इस प्रकार हैं –

माँग की कीमत लोच = माँग की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन / कीमत में प्रतिशत परिवर्तन

कीमत लोच की श्रेणियाँ – वस्तु की मॉग में परिवर्तन की गति इसकी कीमत में परिवर्तन की गति की अपेक्षा तेज या धीमी हो सकती है। इस तरह विभिन्न वस्तुओं की लोच विभिन्न प्रकार की हो सकती है । कीमत लोच की पाँच श्रेणियां निम्नानसार है -

1. लोचदार माँग - लोचदार माँग का अर्थ है कि जिस अनुपात में किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन होता है, उसी अनुपात में वस्तु की मॉग में भी परिवर्तन होता है। माना किसी वस्तु के मूल्य में 20% परिवर्तन होता है, तो उसकी माँग में भी 20% परिवर्तन हो जायेगा। लोचदार माँग की वक्र रेखाचित्र में प्रदर्शित की गयी है।


2. अधिक लोचदार माँग - जब वस्तु की माँग में परिवर्तन इसके मूल्य में होने वाले परिवर्तन से ज्यादा अनुपात में होता है, तो उसे अधिक लोचदार माँग कहते हैं। विलासिता की वस्तुओं की मॉग अधिक लोचदार हुआ करती है। इस बात को एक उदाहरण से भी समझाया। जा सकता है। माना कि किसी वस्तु के मूल्य में 40% वृद्धि होने पर उसकी माँग में 80% वृद्धि हो जाती है। यही अधिक लोचदार माँग है। अधिक लोचदार माँग की वक्र रेखा चित्र में प्रदर्शित की गयी है।

3. पूर्णतया लोचदार माँग - किसी वस्तु के मूल्य में बिना परिवर्तन हुए; अत्यन्त सूक्ष्म परिवर्तन होने पर ही समस्त माँग में यदि बहुत ज्यादा वृद्धि या कमी हो जाती है, तो इसे पूर्णतया लोचदार मॉग कहते हैं। इस प्रकार की मॉग का वास्तविक जीवन में कोई महत्व नहीं होता। पूर्णतया लोचदार माँग की वक्र रेखा को चित्र में प्रदर्शित किया गया है।


4. बेलोच माँग - जब किसी वस्तु की माँग में परिवर्तन इसके मूल्य में परिवर्तन के अनुपात में बहुत कम होता है, तो उसे बेलोचदार माँग कहते हैं। अनिवार्य आवश्यकताओं की लोच इसी प्रकार की होती है । बेलोचदार माँग की वक्र रेखा चित्र में प्रदर्शित की गयी है।

5. पूर्णतया बेलोचदार माँग - यह पूर्णतया लोचदार माँग के विपरीत होती है। जब किसी वस्तु के मूल्य में काफी परिवर्तन होने पर भी इसकी माँग में कोई बदलाव नहीं होता या काफी सूक्ष्म परिवर्तन होता है, तब इसे पूर्णतया बेलोचदार माँग कहते हैं। यह माँग की लोच भी केवल काल्पनिक है । व्यावहारिक जीवन में इस तरह की लोच नहीं पायी जाती है । यह चित्र में दिखाया गया है।


इस तरह कीमत लोच पाँच प्रकार की होती है, पर किसी भी वस्तु की माँग न तो पूर्णतया लोचदार होती है और न ही पूर्णतया बेलोचदार होती है। अतः इन दोनों परिस्थितियों का वास्तविकता से सम्बन्ध नहीं होता। सामान्य तौर से वस्तुओं की माँग की लोच केवल तीन प्रकार की होती है- लोचदार माँग, अधिक लोचदार माँग तथा बेलोच माँग।

(ब) माँग की आय लोच -

किसी भी वस्तु की माँग में परिवर्तन केवल कीमत में परिवर्तन से नहीं आता है, बल्कि उपभोक्ताओं की आय में कमी या वृद्धि भी वस्तु की माँग में कमी व वृद्धि को जन्म देती है। इस प्रकार उपभोक्ताओं की आय में आनुपातिक परिवर्तन से वस्तु की माँग में जो आनुपातिक परिवर्तन होता है उसे माँग की आय लोच कहते हैं। दूसरे शब्दों में, अन्य बातों के समान रहने पर आय में परिवर्तन के प्रत्युत्तर में मॉग में परिवर्तन की मात्रा का माप ही मॉग की आय लोच कहा जाता है। इसका सूत्र इस प्रकार है –

माँग की आय लोच = माँग में प्रतिशत (आनुपातिक) परिवर्तन / आय में प्रतिशत (आनुपातिक) परिवर्तन

माँग की आय लोच की प्रकृति - अधिकांश वस्तुओं की माँग की आय लोच सामान्यतः धनात्मक होती है, अर्थात् आय में वृद्धि, माँग में वृद्धि तथा आय में कमी वस्तु की माँग में कमी को जन्म देती है। इस प्रकार आय और माँग में एक ही दिशा में परिवर्तन की प्रकृति होती है, परन्तु निम्न स्तर की वस्तुओं के सम्बन्ध में माँग की आय लोच ऋणात्मक होती है। अर्थात् आय में वृद्धि से उस वस्तु की माँग में कमी तथा आय में कमी से उस वस्तु की माँग में वृद्धि की प्रवृत्ति आय और मॉग में विपरीत दिशा में परिवर्तन के संकेत देती है । इसके अतिरिक्त कभी-कभी कुछ वस्तुओं की माँग आय में परिवर्तन के परिणामस्वरूप अपरिवर्तित रहती है। ऐसी वस्तुओं की आय लोच शून्य होती है।

माँग की आय लोच की श्रेणियां - जिस प्रकार माँग की कीमत लोच की पाँच श्रेणियां हैं, उसी तरह माँग की आय लोच की भी पाँच श्रेणियां हो सकती हैं। उनमें प्रथम एवं अन्तिम

काल्पनिक लगती हैं, जबकि द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ श्रेणियां ही वास्तविक जीवन में दृष्टिगोचर होती हैं । माँग की आय लोच की पाँच श्रेणियां अग्र प्रकार हैं –

1. माँग की अनन्त आय लोच - जब उपभोक्ता की आय में परिवर्तन बहुत ही सूक्ष्म हो फिर भी वस्तु की माँग में अति परिवर्तन की प्रवृत्ति हो, उसे माँग की अनन्त आय लोच कहेंगे।

2. माँग की आय लोच इकाई से अधिक - जब आय में आनुपातिक परिवर्तन की अपेक्षा वस्तु की मांग में आनुपातिक परिवर्तन अधिक होता है, तो माँग की आय लोच इकाई से अधिक ‘हो जाती है।

3. माँग की आय लोच इकाई के बराबर - जब आय में प्रतिशत परिवर्तन के अनुरूप ही माँग में प्रतिशत परिवर्तन हो, तो माँग की आय लोच इकाई के समान होती है।

4. माँग की आय लोच इकाई से कम - जब आय में आनुपातिक परिवर्तन माँग आनुपातिक परिवर्तन से अधिक हो, तो माँग की आय लोच इकाई से कम होती है ।

5. माँग की शुन्य आय लोच- इसमें आय में आनुपातिक परिवर्तन होने पर भी माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता है, अतः माँग की आय लोच शून्य होती है।

(स) माँग की आड़ी-तिरछी लोच-

किसी भी वस्तु की माँग में परिवर्तन केवल वस्तु की कीमत या उपभोक्ता की आय में परिवर्तन के परिणामस्वरूप नहीं होता, बल्कि उस वस्तु की सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप भी होता है। ऐसी सम्बन्धित वस्तुएं या तो स्थानापन्न वस्तुएं या पूरक वस्तुएं हो सकती हैं। अतः माँग की आड़ी लोच किसी एक वस्तु की माँग में वह आनुपातिक परिवर्तन है, जो दूसरी वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप होता है। इसे नापने हेतु निम्नलिखित सूत्र प्रयोग किया जाता है –

माँग की आडी लोच = x वस्तु की माँग की जाने वाली मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन / y वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तन

माँग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्व

1. समाज में धन का वितरण- जिस समाज में धन का वितरण समान होता है वहाँ पर वस्तुओं की माँग अधिक लोचदार होगी । धन के असमान वितरण से माँग कम लोचदार होती है ।

2. समय का प्रभाव- जितना कम समय होता है वस्तु की माँग की लोच उतनी ही कम लोचदार होगी और इसके विरुद्ध जितना समय अधिक होगा, वस्तु की मॉग की लोच उतनी ही अधिक लोचदार होगी।

3. उपभोक्ता की आदत- यदि कोई उपभोक्ता किसी वस्तु के बिना रह नहीं सकता है। तो उसके लिए उस वस्तु की माँग बेलोचदार होगी।

4. वस्तु के गुण- वस्तु के गुणों का प्रभाव माँग की लोच पर पड़ता है। अनिवार्य वस्तुओं की माँग बेलोचदार तथा आरामदायक वस्तुओं की माँग लोचदार होती है।

5. प्रतिस्थापन वस्तु की पूर्ति- जिन वस्तुओं की स्थानापन्न वस्तुएं बाजार में सरलता से मिल जाती हैं उनकी लोच तुलनात्मक रूप से ज्यादा होती है।

6. वस्तु के विभिन्न उपयोग- जिस वस्तु के उपयोग अनेक होते हैं, उसकी माँग की। लोच भी ज्यादा होती है, जैसे-पानी ।

माँग की लोच का व्यावहारिक महत्व

1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्व- किन्हीं दो देशों के बीच व्यापार की शर्तों के लिए यह विचार बहुत मददगार होता है । अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सौदा करने की शक्ति तथा उससे

प्राप्त लाभ आयातित एवं निर्यात की जाने वाली वस्तुओं को पारस्परिक माँग एवं पर्ति की लोच पर निर्भर है।

2. वितरण में महत्व- माँग की लोच का विचार उत्पत्ति के विभिन्न साधनों का पारितोषिक निश्चित करने में भी मददगार होता है। यदि उत्पत्ति में किसी साधन की माँग वेलोचदार है, तो उसका ऊंची कौमत प्राप्त का जा सकगा। इसके विपरीत जिस साधन की माँग लोचदार है उसको कम पुरस्कार दिया जाता है।

3. राजस्व में महत्व- इस विचार का उपयोग वित्तमंत्री दो स्थानों पर करता है एक तो कर अधिक प्राप्त करने के लिए और दूसरे कर के भार का समाज पर न्यायोचित वितरण करने के लिए।

4. मूल्य निर्धारण में महत्व- मूल्य निर्धारण में माँग की लोच का काफी प्रभाव पडता है । सामान्य रूप से कहा जाता है कि किसी वस्तु के मूल्य निर्धारण में माँग तथा पूर्ति के साम्य का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है, पर पूर्ति के बढ़ने तथा घटने पर वस्तु के मूल्य में जो उतार-चढ़व होते हैं, उनकी जानकारी के लिए माँग की लोच से काफी सहायता मिलती है।

5. एकाधिकारी के लिए महत्व- एकाधिकारी वस्तु का मूल्य निर्धारित करते समय माँग की लोच का अध्ययन करता है। अगर उत्पादित वस्तु की मांग वेलोचदार है तो वह ज्यादा मूल्य रखकर कम मात्रा में बेचेगा। यदि वस्तु की मॉग लोचदार है, तो कम मूल्य करके वह अधिक मात्रा में बेचेगा । कीमत के विभेद में भी एकाधिकारी इसी विचार कि सहायता लेता है ।

6. भाड़ा दरें निश्चित करने में महत्व- यातायात की भाड़ा दरें तय करने में भी इस विचारधारा से मदद मिलती है। जिन यातायात के साधनों की मांग बेलोच होती है, उनकी भाड़े की दर ऊँची होगी। इसके विपरीत जिनकी माँग लोचदार होगी, उनकी भाड़े की दरें नीची होंगी।


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