Botany वनस्पति विज्ञान

प्रश्न 93 : पौधों में विभेदन और अंगजनन विकास क्या है? दोनों क्रियाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।

उत्तरः- पौधों में विभेदन (Differentiation)- कोशिका की किसी भी अवस्था में उपापचयी (metabolic), शारीरिकीय (anatomical), संरचनात्मक (structurual) एवं क्रियात्मक (functional) परिवर्तनों की प्रक्रिया को विभेदन (differentiation) कहते हैं। आवश्यक नहीं है कि विभेदन करने वाली कोशिका वृद्धि करे या वृद्धि करने वाजी कोशिका आवश्यक रूप से विभेदित हो। विभेदन की दृष्टि से कोशिकाओं में होने वाले गुणात्मक (quantitative) परिवर्तन महत्त्वपूर्ण होते हैं। किसी भी विभेदित कोशिका का उद्दीपन द्वारा विर्निभेदित (differentiation) भी किया जा सकता है। जैसे- कैलस की अविभेदित कोशिकाओं को वृद्धि हॉर्मोन्स द्वारा विभेदित किया जा सकता है तथा विभेदित कोशिकाओं को पुनः अविभेदित कैलस में भी परिवर्तित किया जा सकता है।

विभज्योतिकी कोशिकाओं से पूर्णतः विभेदित वाहिकीय तत्त्वों का विकास उन सभी प्रक्रियाओं को दर्शाता है जिनके द्वारा पौधा कोशिका विशिष्टीकरण (cell specialization) के लिए होने वाले आवश्यक परिवर्तनों का नियंत्रित करता है। किसी विभेदित कोशिका के निर्माण की चार अवस्थाएँ हैं-

(i) प्रेरणिक संकेतन (inductive signalling) एवं संकेत अवगमन (signal perception) ।

(ii) कोशिका की पहचान विनिर्देशित करने वाली जीन की अभिव्यक्ति ।

(iii) विभेदित कोशिकाओं की विशिष्ट क्रियाओं अथवा संरचना की अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक जीन।

(iv) विभेदित कोशिका के कार्यों के लिए आवश्यक जीन उत्पादों की सक्रियता तथा कोशिका संरचना में परिवर्तन।

कुछ प्रयोगों से यह प्रमाणित हुआ है कि वाहिकीय तत्त्वों के विभेदन के प्रेरणिक संकेत ऑक्सिन से प्राप्त होते हैं। यदि क्षतिग्रस्त वाहिकीय तत्त्वों की निरन्तरता को पुनः स्थापित न किया जाए तो जल, खनिज एवं कार्बनिक पदार्थों का स्थानान्तरण रुक जाता है जिसके फलस्वरूप पौधा मुरझा जाता है और कुछ ही दिनों में उसकी मृत्यु हो जाती है। अतः ऐसी स्थिति में कॉर्टेक्स की विभेदित कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त भाग में नये वाहिकीय तत्त्व तथा फ्लोएम के चालनी तत्त्व बनाने के लिए उत्प्रेरित किया जता है। सर्वप्रथम क्षतिग्रस्त भाग के चारों ओर स्थित कॉर्टेक्स की कोशिकाओं में अनेक विभाजन होते हैं। तत्पश्चात् ये कोशिकाएँ वाहिकीय एवं चालनी तत्त्वों में विभेदित होती हैं जो अन्ततः पहले से उपस्थित वाहिकीय तत्वों के समानान्तर व्यवस्थित होकर क्षतिग्रस्त भाग में तत्वों की निरन्तरता पुनः स्थापित करने में सहायक होते हैं।

यदि ऊतक के क्षतिग्रस्त होने से पूर्व ऊपर की पत्तियाँ हटा दी जाती हैं तो क्षतिग्रस्त क्षेत्र में ऊतक पुनर्जनित नहीं होते हैं: परन्तु यदि पर्णफलक (lamina) के गिरने के बाद बचे हुए वृन्त के ऊपर ऑक्सिन का लेप लगा दिया जाए तो क्षतिग्रस्त ऊतक के समीपर्ती भाग की पैरेन्काइमी कोशिकाएँ वाहिकीय तत्वों में विभेदित हो जाती हैं। ऑक्सिन का तलाभिसारी दिशा में स्थानान्तरण वाहिकीय तत्वों द्वारा होता है। क्षतिग्रस्त भाग में ऑक्सिन रिसाव द्वारा कॉर्टेक्स की कोशिकाओं में पहुँच जाता है और उन्हें विभाजित होकर वाहिकीय तत्व बनाने के लिए प्रेरित करता है।

अंगजनन अथवा संरचना विकास (Morphogensis)- पादपों में भ्रूणोद्भव के फलस्वरूप पादप शरीर की आधारीय रूपरेखा का निर्माण होता है जिसके फलस्वरूप शीर्षस्थ विभज्योतकी के सक्रिय होने से पादप में पत्ती, शाखायें, मूल एवं पुष्प आदि का निर्माण होता है। इसके लिए प्ररोह एवं मूल शीर्ष की कोशिकाओं में निश्चित क्रम में विभाजन होता है। इस प्रकार कोशिकाओं में विभाजन, वृद्धि एवं अंगों के निर्माण को संरचना विकास (morphogenesis) कहते हैं।

किसी भी पोष पदार्थ में पोषक तत्वों की इष्टतम मात्रा मिलाने पर जो पादपक की संरचना में विभेदन, विकास एवं वृद्धि होती है, उसे संरचना विकास (morphogensis) कहा जाता है। ऊतक संवर्धन में पादप के किसी भी भाग का कर्तेतक लेकर उसे परिवर्धित किया जाता है। कुछ समय बाद इसे उपसंवर्धन माध्यम पर रख कर इसमें मूल व प्ररोह का उत्पादन किया जाता है। बाहर से पोष पदार्थ में इष्टतम मात्रा में पोषक तत्व मिलाने पर जो प्रत्येक पादप जाति के लिए अलग-अलग होते हैं, कोशिकायें विभाजित होना प्रारम्भ कर देती हैं तथा कुछ समय बाद कोशिका विभेदन द्वारा अंग निर्माण शुरू होता है।

अध्ययन के दौरान यह देखा गया है कि कैलस से यदि जड़ पहले बनती है तब उसमें प्ररोह बनने की संभावना कम हो जाती है। इसके विपरीत यदि प्ररोह कलिका पहले निर्मित हो जाती है तब मूल आद्य सरलता से विकसित हो जाते हैं। मूल तथा प्ररोह में जैविक सम्बन्ध स्थापित होते ही पर्ण पादपक निर्मित करने के लिए विभेदन, वृद्धि एवं विकास आरम्भ हो जाता है। जड़ निर्माण के समय कैलस ऊतक का रंग अपरिवर्तित रह सकता है अथवा हल्का पीतवर्ण हो जाता है जबकि प्ररोह कलिका निर्माण के समय हरे तथा पीले रंग के वर्णक निर्मित होकर कैलस का रंग परिवर्तित कर देते हैं।

कैलस से जो शुरू में अंगजनन होता है, उसमें पादपों का विभेदन, विकास एवं वृद्धि दर अच्छी होती है। कभी-कभी कैलस ऊतक कोशिकाओं के गुणसूत्रों में इस प्रकार के अवांछित परिवर्तन हो जाते हैं कि पूर्णशक्तता अवरुद्ध हो जाती है। शुरू में कैलस जिस प्रकार के कर्तेतक से निर्मित होता है, उस आधार पर सभी कोशिकायें समांगी रूप से अगुणित अथवा द्विगुणित होती है। धीरे-धीरे बहुगुणिता के कारण कैलस के व्यवहार में परिवर्तन देखने को मिलते हैं। इसमें कभी मूल उत्पन्न हो जाती है तथा प्ररोह विकसित नहीं हो पाता या कभी-कभी पूर्ण पादपक ही पुनर्जनित हो जाता हैं, अतः यह माना गया कि उपसंवर्धन में अन्तर्जात कारक तथा मोरफो जीन्स (morphogenes) वृद्धि की क्रांतिक (critical) अवस्था में पाये जाते हैं।

जैव रासायनिक शोध से संरचना विकास में हॉर्मोन तथा उनकी मात्रात्मक पारस्परिक क्रिया को महत्त्व दिया गया है। प्ररोह व जड़ विभेदन से पूर्व यह पाया गया कि कैलस ऊतक में परऑक्सीडेज एन्जाइम सक्रिय हो जाता है तथा ऐसे विकर जो कार्बोहाइड्रेट उपापचय में सहयोगी होते हैं, उनकी गतिविधियाँ काफी बढ़ जाती हैं, अतः यह माना जा सकता है कि पूर्णशक्त कोशिकायें अपने आंतरिक नियंत्रित प्रोग्राम के अनुसार ही विभेदन, विकास एवं संरचनात्मक विकास करती हैं।

संरचना विकास में महत्त्वपूर्ण कारक- निम्नांकित हैं-

(1) कर्तातक प्राप्ति स्थल- कर्तातक पादप के किस भाग से लिया गया है। यह संरचना विकास में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होता है। कर्तेतक किस स्थल से लेने पर वृद्धि अच्छी करेगा यह प्रत्येक पादप जाति के लिए निश्चित होता है, जैसे-

(a) संचयी भाग - एकबीजपत्री पादप।

(b) पर्ण - सोलेनम, बिगोनिया।

(e) पुष्प स्तम्भ - ट्यूलिप।

(2) कर्तातक की आयु (Age of Explant)- कर्योतक के स्रोत तथा आमाप के अतिरिक्त उसकी आयु भी महत्वपूर्ण होती है। जैसे निकोटियाना में तरूण पर्ण केवल जड़ उत्पन्न करती है तथा मध्य आयु पर्ण से जड़ व तना निर्मित करती है।

(3) कर्तेतक का आमाप (Size of Explant)- कर्योतक का आमाप संरचना विकास पर प्रभाव डालता है। छोटे आमाप के कर्तेतक के बजाय थोड़े बड़े कर्तेतक में पुनर्जनम क्षमता अधिक पायी जाती है।

(4) संवर्धन माध्यम (Culture Medium)- संवर्धन माध्यम में विभिन्न पोषक तत्व होते हैं जो संरचना विकास में सहायक होते हैं। सूक्ष्म, वृहत्, खनिज लवण, शर्करा, फॉस्फेट तथा विटामिन आदि पोषक तत्व होते हैं। इन सभी की मात्रा पादप जाति के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।

(5) हॉर्मोन (Hormone)- संरचना विकास में ऑक्सिन एवं साइटोकाइनिन हॉर्मोन प्रभाव डालते हैं।

(6) प्रकाश (Light)- प्रकाश का रंग तथा अवधि संरचना विकास को प्रभावित करता है। प्रकाश के नीले रंग द्वारा प्ररोह व लाल रंग द्वारा मूल का विभेदन प्रेरित होता है।

(7) ऑक्सीजन प्रवणता- कैलस में ऑक्सीजन की सान्द्रता (प्रवणता) भी प्रभाव डालती है। ऑक्सीजन की सान्द्रता कम होने पर प्ररोह कलिका व अत्यधिक सान्द्रता पर जड़ें विकसित होती हैं।

संरचना विकास के उपयोग (Use of Morphogenesis)- निम्न हैं-

(1) इसके द्वारा पादपों की मूलभूत आवश्यकताओं के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।

(2) कैलस संवर्धन द्वारा आर्थिक महत्व के पादपों का पुनर्जनम किया जाता है।

(3) इसके द्वारा रोग-प्रतिरोधी जातियाँ विकसित की जा रही है।


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