Botany वनस्पति विज्ञान

प्रश्न 88 : हरित क्रान्ति से जीन क्रांति के बारे में विस्तृत वर्णन कीजिये।

उत्तर- हरित क्रान्ति से जीन क्रान्ति (Green Revolution to Gene Revolution)-

हरित क्रांति का मूल आधार पादप प्रजनन है जिसका प्रमुख उद्देश्य मुख्यतः फसलोत्पादक पौधों (Crop plants) की उत्तम गुणवत्ता वाली किस्मों का विकास करना है। विज्ञान की इस शाखा के विस्तृत अध्ययन एवं प्रयोगों से विभिन्न उपयोगी फसलोत्पादक पौधों की प्राचीन किस्मों को आनुवांशिक रूप से उन्नत एवं परिष्कृत करके इनसे नई एवं उत्तम गुणवत्ता एवं उत्पादन वाली पादप किस्मों का विकास किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त नवीन किस्में अपने पूर्वज पौधों से इच्छित या वांछित गुणों में बेहतर होती है। पादप प्रजनन वैज्ञानिकों एवं कृषि विज्ञानियों ने समय-समय पर अपने अनुसंधान एवं शोध के द्वारा नई उपयोगी पादप किस्मों को विकसित कर सम्पूर्ण मानवता को लाभान्वित किया है। भारत में 1960 के दशक में खाद्यान्न समस्या ने इतना गम्भीर रूप धारण कर लिया था कि हमें विदेशों से गेहूँ आयात करना पड़ गया था। परन्तु मैक्सिकों से अर्धबैंगनी गेहूँ। (somidworf wheat) मँगाकर हमारे वैज्ञानिकों ने पादप प्रजनन द्वारा किसानों को गेहूं की ऐसी किस्में दी, जिससे हरित क्रान्ति (Green revolution) का प्रार्दुभाव हुआ। कुछ वैज्ञानिकों में डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन, डॉ. बी.पी. पाल, वेंकट रमन, रमैय्या, मेहता, रामधन सिंह, जी. एम, रेड्डी, चौपडा आदि ने भारत में हरित क्रांति के लिए उल्लेखनीय कार्य किया।

इसी प्रकार डॉ एम. एस. स्वामीनाथ के मार्गदर्शन में चावल की भी अनेक नई किस्में विकसित की गई।

पादप प्रजनन से उन्नत किस्में तैयार करने के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं को अपनाना पड़ता है। जैसे पादप पुरस्थापन, चयन एवं संकरण आदि। इन सभी प्रक्रियाओं का मूल सिद्धान्त यह है कि परम्परागत या स्वपरागित पादप किस्मों को जिनका कि प्राकृतिक रूप से परागण नहीं होता है, उन्हें कृत्रिम तरीकों से परागित करके नई किस्म तैयार करना अर्थात् इच्छित गुणों का समावेश किसी एक किस्म से दूसरी किस्म या एक जाति से दूसरी जाति या वंश के पादपों में समावेश करवाना है।

आधुनिक समय में जब से जैव प्रौद्योगिकी एवं आण्विक जीव विज्ञान जैसी शाखाओं का विकास हुआ है एवं वैज्ञानिकों को डी.एन.ए. एवं जीन के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई है। वैज्ञानिकों ने मानव एंव पादपों की सभी जीनों को क्रमबद्ध कर लिया है एवं जीवों के प्रत्येक गुण के लिए कौनसी जीन या डी.एन.ए उत्तरदायी हैं, यह भी पता लगा लिया है। वर्तमान में ऐसी प्रौद्योगिकी भी उपलब्ध है, जिससे किसी भी जीव की कोशिका में से इच्छित जीन (DNA) को बाहर निकालकर उसके सभी गुणों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। ऐसी प्रौद्योगिकी भी विकसित की जा चुकी है जिससे किसी भी जाति के पादप से कोई भी जीन को अलग करके अन्य जाति के पादप की कोशिका में विभिन्न तकनीकों द्वारा समावेश किया जा सकता है जिससे उन्नत किस्मों के पादप तैयार किये जा सकते हैं।

आधुनिक युग में बाहरी जीनों की स्थापना से अनेक आर्थिक महत्त्व के उच्चवर्गीय पौधों में अनेक उत्तम अतुलनीय गुणवत्ता वाली बेहतर किस्मों का विकास किया जा रहा है। इस प्रक्रिया में जीन अभियांत्रिकी (Genetic engineering) का सहयोग अतुलनीय है। जीव विज्ञान की इस नवीनतम एवं विकासशील शाखा के अन्तर्गत विभिन्न जीवधारियों की जीनों या DNA में इच्छित बदलाव के द्वारा वांछित DNA खण्डों या जीनों का समावेश (Invorporation) एवं इसके साथ ही हानिकारक या अनुपयोगी जीनों का प्रतिस्थापन (replacement) किया जाना सम्भव हो सका है।


hi