Botany वनस्पति विज्ञान

प्रश्न 81 : 'वाष्पोत्सर्जन एक आवश्यक खोट है।' क्या आप इससे सहमत हैं? पौधे पानी की अधिक हानि को कैसे नियंत्रित करते हैं?

उत्तर– वाष्पोत्सर्जन के लिए प्रायः कहा जाता है कि वाष्पोत्सर्जन एक आवश्यक खोट है। हम इस कथन से सहमत हैं क्योंकि वाष्पोत्सर्जन क्रिया पौधों के लिए उपयोगी हो सकती है लेकिन इसकी अनुपयोगितायें भी कम नहीं हैं। पौधों में जल तथा लवणों का अवशोषण व पत्तियों का शीतन कुछ स्तर तक वाष्पोत्सर्जन की अनुपस्थित में भी हो सकता है। अतः तुलनात्मक रूप से पौधों के लिए वाष्पोत्सर्जन एक अहितकारी क्रिया ही है। लेकिन पौधे इसका नियंत्रण नहीं कर सकते। हैं। अतः जब कभी पर्णरन्ध्र खुले हुए होंगे जो कि प्रकाश संश्लेषण में गैसीय विनियम के लिए आवश्यक है, रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन होगा। गैसीय विनिमय तथा रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन को अलग नहीं किया जा सकता है। अतः पौधे चाहते हुए भी वाष्पोत्सर्जन के अभिशाप से मुक्त नहीं हो जाते। हैं। यही कारण है कि कर्टिस ने वाष्पोत्सर्जन को अनिवार्य अहित तथा स्टीवर्ड ने इसे अपरिहार्य अहित या बुराई कहा है।

वास्तव में पत्ती की सामान्य संरचना गैसीय विनियम के अनुरूप निर्मित है, जबकी वाष्पोत्सर्जन की क्रिया केवलं प्रसंगवश इस संरचना के युक्तियुक्त है। यह क्रिया पौधों के अस्तित्व के लिए किसी प्रकार से भी जीवनोपयोगी नहीं है। प्रतिवर्ष लाखों पौधों की अत्यधिक वाष्पोत्सर्जनके अभिशाप के कारण मृत्यु हो जाती है। वर्ष में अनेक समय ऐसी परिस्थितियाँ प्रस्तुत होती हैं, जबकी अवशोषण की दर अत्यधिक की दर निम्न हो जाती है। लेकिन वाष्पोत्सर्जन की क्रिया होती है। फलस्वरूप तीव्र जल न्यूनता की स्थिती के उत्पन्न हो जाने से पौधों को जीवन से हाथ धोना पड़ता है। पुनः वाष्पोत्सर्जन के खतरों से सावधान रहने के लिए पौधों को आवश्यक रूप से अतिरिक्त जल अवशोषण हेतु विशेष व्यवस्थाओं रखनी पड़ती है जिसमें इनकी कुछ ऊर्जा का व्यय तो अवश्य ही होता है, जो नितान्त अर्थहीन है। इतना सब कुछ होने के बाद भी यह क्रिया अपरिहार्य है, अर्थात् पौधे चाहते हुए भी इससे मुक्त नहीं हो सकते।

वाष्पोत्सर्जन से हानियाँ (Disadvantages from Transpiration)- कई रूपों में वाष्पोत्सर्जन पौधों के लिए हानिकारक है। अवशोषित जल की 97% मात्रा वाष्प रूप में त्याग दी जाती है। अतः यह क्रिया अपव्ययकारी प्रतीत होती है।

कुछ प्रमुख हानिकारक प्रभाव निम्न हैं-

(1) ह्यसित वृद्धि (Reduced Growth)- अधिक वाष्पोत्सर्जन होने पर पौधों के वृद्धि शीर्ष तक जल की पर्याप्त मात्रा नहीं पहुँच पाती है जिसके कारण इन कोशिकाओं की स्फिति (turgidity) कम हो जाती है। स्फिति के अभाव में कोशिका विभेदन एवं दीर्घन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार वाष्पोत्सर्जन की क्रिया में अधिक जल ह्यस करने वाले पौधे ठिगनी वृद्धि (Stunted growth) प्रदर्शित करते हैं।

(2) उपज में कमी (Reduced Yield)- वाष्पोर्सन के फलस्वरूप पौधों में जल न्यूनता के कारण वृद्धि मन्द हो जाती है, पुष्पन देरी से होता है तथा फल संख्या में कम व आमाप में छोटे उत्पन्न होते हैं।

उपपाचयी क्रियाएँ (Metabolic Reactions)- कई बार जब वाष्पोत्सर्जन की दर अधिक होती है तो पादप में आन्तरिक जल न्यूनता (internal warer deficit) उत्पन्न हो जाती है अर्थात् जीवद्रव्य में जल की मात्रा अनुकूलता स्तर से कम हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में पादप की उपापचयी क्रियाएँ प्रभावित होती हैं। जल न्यूनता की स्थिति में प्रकाश संश्लेषण की दर कम हो जाती है तथा प्रोटीन संश्लेषण भी बाधित होता है।

(4) शुष्कन या भ्लानि (Dessication of Wilting)- वाष्पोत्सर्जन के फलस्वरूप अत्यधिक जल ह्यस के कारण पौधों में जलं न्यूनता उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में यदि मृदा से जल उपलब्ध नहीं हो पाता है तो पत्तियाँ मुरझा जाती हैं तथा अन्ततः पौधों की मृत्यु भी हो सकती है।

(5) प्रोटीनों का विघटन (Breakown of Proteins)- पौधों की अमीनो अम्ल तथा प्रोटीन उपापचय क्रियायें जल प्रतिबल अवस्थाओं से प्रभावित होती हैं। जल प्रतिबल की अवस्था में केवल प्रोटीन संश्लेषण की क्रियाओं में ही विघ्न उत्पन्न नहीं होता, बल्कि प्रोटीनों की टूट फूट भी त्वरित हो जाती है। बार्नेट तथा नेलर ने बर्मुडा घास : (Cynodon dactylon दूब घास) पर महत्वपूर्ण अनुसंधान किया हैं।

पौधों द्वारा पानी की अधिक हानि का नियंत्रण-

(1) रन्ध्र (Stomata)- रन्ध्रों के आकार, स्थिति व वितरण का वाष्पोत्सर्जन की दर पर अधिक प्रभाव पड़ता है। शुष्क वातावरण में पौधों की पत्तियों में प्रति इकाई क्षेत्रफल में रन्ध्रों की संख्या नम जलवायु वाले पादपों की अपेक्षा कहीं अधिक होती है। लेकिन शुष्क जलवायु वाले पादपों में रन्ध्रों का आकार अपेक्षाकृत छोटा होता है और ये रन्ध्र पूर्णतया कभी नहीं खुलते हैं।

(2) शर्करा की सान्द्रता (Concentration of suger)- उन ऊतकों व कोशिकाओं में जिनमें शर्करा की सान्द्रता कम होती है। विलेयकों का संग्रहण उतनी अधिक गति से नहीं हो पाता है जितना कि उन कोधिकाओं में जिनमें कि शर्करा की सान्द्रता अधिक होती है। स्टिवार्ड (Steward) के मतानुसार शर्करा से सम्बन्धित कोशिका की पूर्व दशा जल त्याग की दर पर प्रभाव डालती है।

(3) पर्णमध्योतक की कोशिकाओं में जल की मात्रा (Water content of meso phyll cells)- पर्णमध्योतक की कोशिकाओं से वाष्पोत्सर्जन क्रिया में जो जल त्याग होता है, यदि उसकी पूर्ति जड़ों द्वारा अवशोषित जल से तत्काल न हो पाये तो पादप शरीर में जल न्यूनता की स्थिति पैदा हो जाती है। कोशिका भित्तियाँ अपेक्षकृत शुष्क हो जाती हैं, फलस्वरूप वाष्पन व विसरण घट जाता है। ऐसी स्थिति में पर्णमध्योतक की कोशिकाएँ रन्ध्रों की द्वार कोशिकाओं से जल खींचना प्रारम्भ कर देती हैं। इस क्रिया के कारण द्वार कोशिका की स्फीति कम होती जाती है और रन्ध्र आंशिक रूप से या पूर्णतया बंद हो जाते हैं।

(4) पर्ण दिविन्यास (Leaf orientation)- पत्ती का विन्यास भी वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करता है। यदि आपातित किरणें पत्ती के लम्बवत् हो तो वाष्पोत्सर्जन की दर अधिक होती है। इसके विपरीत यदि पत्तियों का दिविन्यास आपतित विकिरण के समकोण पर हो तो पत्ती का तापमान कम बढ़ता है, जिससे वाष्पोत्सर्जन की दर भी कम होती है।

(5) श्वसन दर (Respiration rate)- कोशिका की उपापचयी क्रियाओं और कोशिका द्वारा विलेयकों के अवशोषण व संग्रहण में अन्तरंग (घनिष्ट) सम्बन्ध होता है। आयन संग्रहण क्षमता की प्रवणता के साथ साथ श्वसन प्रवणता भी घटती बढती रहती है। आरनोन व होगलैण्ड (Aron and Hoagland, 1940) के निष्कर्ष के अनुसार अपर्याप्त मृदा वातन (soil aeration) वृद्धि के लिए प्रायः सीमाकारी कारक होता है। क्योंकि अपर्याप्त वातन के कारण मूल द्वारा भूमि से आवश्यक पोषक तत्वों का अवशोषण घट जाता है।

(6) पर्ण संरचना (Leaf structier)- कुछ पौधों की पत्तियाँ वाष्पोत्सर्जन के प्रति अनुकूलित हो जाती हैं- जैसे–पत्तियों का वेलित होना, कांटों में रूपान्तरित होना, पत्तियों के छोटे आकार का होना अथवा सूच्याकार होना, पत्तियों पर मोटी क्यूटिकल तथा धंसे हुए रन्ध्र होना आदि लक्षण वाष्पोत्सर्जन दर को कम करते हैं।

(7) मूल प्ररोह अनुपात (Root-shoot ration)- मूल प्ररोह अनुपात कम होने पर वाष्पोत्सर्जन दर भी कम होती है तथा अनुपात अधिक होने पर वाष्पोत्सर्जन दर भी अधिक होती है।

(8) पादप जाति (Plat species)- विभिन्न जातियों के पौधे विभिन्न पोषक तत्वों का अवशोषण वृद्धि के लिए विभिन्न अनुपात में करते हैं। इस कारण विभिन्न जातियों में भिन्न भिन्न संरचना होने से वाष्पोत्सर्जन की दर प्रभावित होती है।


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