Botany वनस्पति विज्ञान

प्रश्न 18 : प्रकाश संश्लेषण किसे कहते हैं ? प्रकाशिक अभिक्रिया (फास्फोरिलीकरण) को विस्तार से समझाइये।

उत्तर– प्रकाश संश्लेषण (Photo synthesis)- पादपों की ऊर्जा संग्रहण क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। दूसरे शब्दो में प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है जिसके द्वारा हरित पादप सूर्य के प्रकाश का प्रयोग कर सरल अणुओं कार्बन डाइ ऑक्साइड एवं जल से भोजन बनाते हैं।

प्रकाशिक अभिक्रिया (Photophoshorylatoin)– आर्नन तथा सहयोगियों (1954) ने खोज की कि प्रकाश की उपस्थिति में क्लोरोप्लास्ट ATP का संश्लेषण करते हैं। उन्होंने प्रकाश की उपस्थिति में ATP के संश्लेषण की क्रिया को प्रकाश फॉस्फोरिलीकरण नाम दिया। इस तथ्य से यह प्रमाणित हुआ कि कोशिकाओं में माइट्रोकॉण्ड्रिया के अलावा ATP का निर्माण क्लोरोप्लास्ट में भी होता है। इसके अतिरिक्त यह क्रिया माइटोकॉण्ड्रिया की ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण (oxidative phosphorylation) क्रिया से अलग है, क्योंकि इसमें प्रकाश ऊर्जा का स्त्रोत है तथा यह क्रिया O2 पर निर्भर नहीं है।

हरे पादपों में प्रकाश फॉस्फोलिरीकरण दो प्रकार का होता है -

(1) चक्रिय प्रकाश फास्फोरिलीकरण (2) अचक्रिय प्रकाश फास्फोरिलीकरण

(1) चक्रिय प्रकाश फास्फोरिलीकरण (Cyclic photophosphorylation)- इसमें PSI प्रयुक्त होता है। चक्रिक फास्फोरिलीकरण तब होता है जब CO2 का स्वांगीकरण कम हो जाता है। तथा NADPH+H+ एकत्रित हो जाता है तथा अन्य उपापचयी क्रियाओं के लिए ATP की आवश्यकता होती है। 700 के लाल प्रकाश के अवशोषण से PSI क्लोरोफिल एवं सहायक वर्णक प्रकाश अवशोषित कर उसे अभिक्रिया केन्द्र अर्थात् chl-9-700 को स्थानांतरित कर देते हैं। इसमें PS-I का वर्णक अणु P700 उत्तेजित होता जाता है इससे ऊर्जा युक्त इलेक्ट्रॉन अपनी कक्षा से बाहर निकल जाता है। P700 ऑक्सीकृत हो जाता है। इसे इलेक्ट्रॉन को PS-I तंत्र का chala अथवा A1 अणु ग्रहण कर लेता है। तथा इससे इसका स्थानांतरण A2 को होता है। जो एक fe-s प्रोटीन होती है। इससे इलेक्ट्रॉन A3 अथवा P430 वर्णक के द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है तथा यह अपचयित हो जाता है। अपचयित A3 से इलेक्ट्रॉन का स्थानान्तरण फैरेडोक्सिन अपचयकारी पदार्थ के माध्यम से फैरेडॉक्सिन (fd) को हो जाता है।



उपापचयी परिस्थितियों (NADPH+H+) की अधिकता के कारण) अपचयित fd.NADP+ को अपचयित नहीं कर पाता इसलिए इससे इलेक्ट्रॉन सायटोक्रोम (cytob563) को स्थानांतरित हो जाते हैं। इस दौरान एक ATP बनता है।



सायटोक्रिम be से इलेक्ट्रान हाइड्रोजन वाहक प्लास्टोक्वीनोन (PQ) के द्वारा ग्रहण किये जाते हैं साथ ही थायलेकॉइड की झिल्ली की बाहरी ओर से प्रोटॉन (H) भी जुड़ जाते हैं तथा यह प्लास्टोहाइड्राक्यूनोन में परिवर्तित हो जाता है।



जब PQH2 से इलेक्ट्रॉन सायटोक्रोम को स्थानान्तरित होते हैं। जबकि प्रोटॉन (H+) मुक्त होकर थायलेकॉइड झिल्ली के दूसरी ओर भीतर की ओर चले जाते हैं। इस दौरान एक ATP का संश्लेषण होता है।



चित्र- प्रकाश संश्लेषण में एवं चक्रिय एवं अचक्रिय फोटोफास्फोरिलीकरण दर्शाते हुए प्रकाश उत्तेजित इलेक्ट्रॉन नमन (z-स्कीम)



अपचयित सायटोक्रॉम से इलेक्ट्रॉन पहले प्लास्टोसायनिन तथा उससे वापस आक्सीकृत P700 को चले जाते हैं तथा पुनः सामान्य अवस्था में लौट आता है।



इस प्रक्रिया में 2ATP अणु बनते हैं।

(2) अचक्रिय प्रकाश फास्फोरिलीकरण (Non-cyclic photophosphorylation)- उच्च पादपों में यह प्रकाश फास्फोरिलीकरण (photophosphorylation) की सामान्य विधि है। इस प्रक्रिया में है उत्तेजित क्लोरोफिल अणु से निष्कासित इलेक्ट्रोन कभी भी पुनः उसी क्लोरोफिल अणु को प्राप्त नहीं होता है, अपितु इलेक्ट्रॉन निष्कासन के बाद ऑक्सीकृत क्लोराफिल जल विघटन से प्राप्त इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर अपनी वास्तविक स्थिति में आ जाता है। इस प्रकार इस प्रक्रिया में जल अपघटन से प्राप्त इलेट्रॉन ऑक्सीकृत क्लोरोफिल को अपचयित करते हैं। इसके अलावा इस प्रक्रिया में दोनों प्रकाश तन्त्र (PS-I व PS-II) सक्रिय होते हैं।

अचक्रिय प्रकाश फॉस्फोरिलीकरण एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें प्रकाश तन्त्र I(PS-I) तथा प्रकाश तंत्र- II (PS-II) दोनों प्रकाश व अवशोषण कर इलेक्ट्रॉन निष्कासित करते हैं। प्रकाश तंत्र -I (PS-II) के उत्तेजित क्लोरोफिल से निष्कासित इले क्ट्रॉन वाहको-प्लास्टोक्वीनोन (PQ), साइटोक्रोम b6 (Cyt.b6) साइटोक्रोम (Cyt.f) तथा प्लास्टोसायनिन (PC) से होता हुआ प्रकाशतन्त्र – I (PS-I) के P700 तक पहुँचता है। प्रत्येक चरण पर ऊर्जा विमुक्त होती है। तथा साइटोक्रोम b6 व साइटोक्रोम-f के मध्य ATP संश्लेषण हेतु आवश्यक ऊर्जा उपलब्ध होती है। प्रकाश तन्त्र - I (PS-I) शुरू में ही फोटॉन ग्रहण कर इलैक्ट्रॉन निष्कासन द्वारा ऑक्सीकृत हो चुका होता है तथा इस तंत्र (PS-II) से इलेक्ट्रॉन प्राप्त कर पुनः एक इलेक्ट्रॉन का निष्कासन कर देता है। प्रकाश तंत्र -I (PS-I) द्वारा निष्कासित इलेक्ट्रॉन फेरेडॉक्सिन (Fd) द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है। अपचयित फेरेडॉक्सिन से यह इलेक्ट्रॉन अन्य इलेक्ट्रॉन NADP (निकोटिनामाइड एडीनीन डाईफॉस्फेट) द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है तथा जल से उत्पन्न H के सहयोग से NADPH2 का निर्माण होता है। प्रत्येक दो जलअणु के ऑक्सीकारक से 2ATP का निर्माण तथा 2NADP का अपचयन तथा एक ऑक्सीजन अणु का विमोचन होता है। अचक्रीय प्रकाश फॉस्फोरिलीकरण की सम्पूर्ण अभिक्रिया को निम्नांकित प्रकार से निरूपित किया जा सकता है 2ADP+2Pj+2NADP+2H2 →2ATP+2NADPH2+O2↑ पादप को केवल 680nm से अधिक तरंगदैर्ध्य प्रकाश देने पर केवल PS-I सक्रिय होता है तथा रिथति में चक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण होता है, चक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण बन्द हो जाता है। चक्रीय फॉस्फोरिलीकरण में NADPl2 का निर्माण होता, इसलिए CO2 का स्वांगिकरण भी मंद होते हुए अन्ततः अन्द हो जाता है। जब पादप को 680mm से अधिक तरंगदैर्ध्य के प्रकाश के साथ साथ कम तरंगदैर्ध्य का प्रकाश भी दिया जाता है तो अचक्रीय प्रकाश फॉस्फोरिलीकरण पुनः स्थापित हो जाता है जिसमें NADPH2 का उत्पादन शुरू हो जाता है। तथा CO2 के स्वांगीकरण में चक्रीय फॉस्फोरिलीकरण में निर्मित ATP अणुओं का दक्षता से उपयोग होने लगता है जो इमरसन वर्धन प्रभाव को स्पष्ट करता है।


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